संविधान के संदर्भ में हमने कई बार भारतीय राज व्यवस्था (पॉलिटी) में आधार संविधान संशोधन, आधार भूत ढाँचे का सिद्धांत (Doctrine of Basic Structure) तथा केशवानन्द भारती मामले को पढ़ा एवं सुना है। यह एक ऐसा टॉपिक है जिसको समय समय पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अलग-अलग जजमेंट द्वारा अलग अलग समय पर कई प्रकार से व्याख्या की जाती रही है।
आज के आर्टिकल में हम विस्तार से समझेंगे कि आखिर क्या है आधार भूत ढाँचे का सिद्धांत (Aadharbhut dhanche ka siddhant in hindi) जिसके प्रकरण में संविधान संशोधन को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई सारे जजमेंट दिया गया है। साथ ही आसान भाषा में यह जानेंगे कि क्या है ‘केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य’ जजमेंट जिसने आधार भूत ढाँचे के सिद्धांत को नई परिभाषा स्थापित की।
पृष्ठभूमि
संविधान के निर्माताओं ने अनुच्छेद 368 के तहत संसद को संविधान संशोधन की शक्ति प्रदान किया था। किंतु साथ में अनुच्छेद 13(2) में यह वर्णित किया गया था कि राज्य कोई ऐसी ‘विधि’ नहीं बनाएगा जो भाग-3 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को छिनती या न्यून करती है। यानी कि संसद संविधान में प्रदान किये गए मूल अधिकारों ( Fundamental Rights) को ना तो कम कर सकती है और ना ही खत्म।
इस प्रकरण में ‘विधि’ शब्द को और सरल ढंग से व्याख्या करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने ‘शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ’ मामले को पटाक्षेप किया जिसमें यह बात खुलकर आई कि इसमें सिर्फ सामान्य विधायी शक्ति के प्रयोग से बनाई गई विधि आती है, संविधायी शक्ति के प्रयोग द्वारा किये गए ‘ संविधान संशोधन विधि नहीं’
पुनः ‘गोलकनाथ सिंह बनाम पंजाब राज्य’ वाद में सुप्रीम कोर्ट ने ‘शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ’ के जजमेंट को पलटते हुए यह ज्ञापित किया कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को भाग-3 में संशोधन करने की कोई शक्ति प्राप्त नहीं है। क्योंकि अनुच्छेद 368 में सिर्फ संविधान संशोधन की प्रकिया का प्रावधान है, संविधान संशोधन की शक्ति का नहीं।
इस प्रकार यह अब तक एक गुढ़ प्रश्न बना रहा कि आखिर अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन की विधि को माना जायेगा या सिर्फ साधारण विधि को। इस प्रकार एक लंबी प्रक्रिया के उपरांत सुप्रीम कोर्ट ने केशवानन्द भारती मामले में यह जजमेंट दिया कि ” संसद मूल अधिकारों (Fundamental Rights) सहित संविधान के किसी भी उपबन्ध में संशोधन कर सकती है, किंतु न्यायालय द्वारा उसकी समीक्षा की जा सकती है, और यदि वह उपबन्ध संविधान के मूलभूत ढाँचे को नष्ट करता है, तो न्यायालय उसे अविधिमान्य घोषित कर सकता है।”
क्या है केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य मामला
केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य वाद में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह यक्ष प्रश्न खड़ा था कि आखिर अनुच्छेद 368 के तहत संसद की संविधान संशोधन की शक्ति की सीमा ( Limit) क्या है ? क्या संसद अनुच्छेद 368 के तहत समूल संविधान का संशोधन कर सकता है या सिर्फ कुछ एक विधि को ?
इस प्रकार कई पुराने वक्तव्यों तथा जजमेंटो को पलटकर सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य वाद में यह 7:6 के बहुमत से यह फैसला सुनाया कि ‘यद्यपि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्रदान है लेकिन वह असीमित (Unlimited) नहीं है। संसद को कुछ सीमित शक्तियां ही प्राप्त है जिससे कि वह संविधान में ऐसा कोई संशोधन नहीं कर सके जिससे कि संविधान के मूल तत्व तथा उससे जुड़े आधार भूत ढाँचे का सिद्धांत ( Basic Structure) ही नष्ट हो जाए।
सर्वोच्य न्यायालय के इस जजमेंट ने संसद को एक सीमा में संविधान संशोधन करने की हिदायत दी जिससे कि संविधान की मूल आत्मा यानी कि आधार भूत ढाँचे की गरिमा बनी एवं बची रहे।
साधारण शब्दों में अगर केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य मामले को अगर लिखा जाए तो यही लिखा जाएगा कि इस जजमेंट ने संसद को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन की शक्ति उतना ही प्राप्त होगा जिससे कि मूल संविधान की छवि धूसरित धूमिल न पड़ जाए। किंतु फिर भी अगर संसद बहुमत के बल पर ऐसा गलत संशोधन करने की कवायद करता है तो न्यायालय द्वारा उसे चुनौती दी जा सकती है एवं उसे तत्काल प्रभाव से रद्द भी किया जा सकता है।
क्या है आधार भूत ढाँचे का सिद्धांत
(Doctrine of Basic Structure)
Aadharbhut dhanche ka siddhant in hindi
जैसा कि हम सभी को यह ज्ञात हो गया कि किस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने केशवानन्द भारती मामले में आधार भूत ढाँचे के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए बहुमत से यह निर्णय दिया था कि ‘संसद, संविधान में ऐसा कोई संशोधन नहीं कर सकती है जिससे कि मूल संविधान के आधार भूत ढ़ांचे की गरिमा नष्ट हो जाए।’
आगे सर्वोच्च न्यायाल ने ‘आधार भूत ढाँचे’ को लेकर एक जजमेंट भी प्रतिपादित किया कि प्रत्येक मामले के तथ्यों (Facts) के आधार पर यह निर्धारित किया जाएगा कि आखिर संविधान का आधार भूत ढ़ांचा क्या है। ऐसे तो आधार भूत ढांचे को लेकर कोई ऐसी आधार रेखा तय नहीं की गई कि आखिर आधार भूत ढांचे की शुद्ध परिभाषा क्या रखा जाए फिर भी ‘आधार भूत ढांचे’ से तात्पर्य संविधान के ऐसे उपबन्धों से है, जो संविधान का मूल स्वरूप, गरिमा या भावना निर्मित करते हैं। जो सबको एक सूत्र में पिरोकर सुत्रित करते हैं।
जैसे कि निम्नलिखित तत्वों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान का आधार भूत ढ़ांचा घोषित किया गया है :-
1) संविधान की सर्वोच्चता,
2) गणतंत्रात्मक तथा लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली,
3) शक्तियों का पृथक्करण,
4) संविधान का पंथ निरपेक्ष स्वरूप,
5) संघात्मक शासन प्रणाली,
6) राष्ट्र की एकता और अखण्डता,
7) कल्याणकारी राज्य की स्थापना,
8) व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं गरिमा,
9) विधि का शासन,
10) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव पर आधारित लोकतंत्र,
11) न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति,
12) मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों में सामन्जस्य,
13) संसदीय शासन प्रणाली,
14) संसद की संविधान संशोधन की सीमित शक्ति,
15) संविधान की प्रस्तावना में निहित उद्देश्य,
16) न्यायापालिका की स्वतंत्रता, आदि
Important Facts
सबसे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने गोलक नाथ बनाम पंजाब राज्य के वाद मामले में संसद की संविधान संशोधन शक्ति को सिमित किया था।
केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य के मामले में गठित 13 न्यायाधीशों की पीठ अब तक के सबसे बड़ी पीठ थी जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश श्री सीकरी ने किया था।
केशवानन्द भारती केस में पहली बार आधार भूत सरंचना सिद्धांत को परिभाषित किया गया।
इस प्रकार आज के आर्टिकल में हमने विस्तार से यह चर्चा की, कि संविधान की मूल सरंचना सिद्धांत यानी कि आधार भूत ढ़ांचे का सिद्धांत क्या है, आधार भूत संरचना का आशय और महत्व क्या है, संविधान का मूल ढाँचा क्या है इत्यादि। साथ ही केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य वाद, गोलकनाथ सिंह बनाम पंजाब राज्य वाद तथा ‘शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ’ मामले को भी हमने बारीकी से अध्ययन किया।
हमें विश्वास है कि आपको यह आर्टिकल पढ़कर काफी अच्छा लगा होगा। आर्टिकल को स्टडी ग्रुप में शेयर करना न भूलें एवं कोई सुझाव हो तो कमेंट बॉक्स में जरूर कमेंट करें। धन्यवाद
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