Fandamental rights

मूल अधिकार TOP-20 FACTS

मूल अधिकार TOP-20 FACTS

मूल अधिकार का सर्वप्रथम विकास ब्रिटेन में हुआ था। तथा सर्वप्रथम अमेरिका के संविधान में मूल अधिकार का प्रावधान किया था।

मूल अधिकार भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता है किंतु इसे संविधान द्वारा परिभाषित नहीं किया गया है।

अनुच्छेद 12 से 35 के अंतर्गत नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान किया गया है। संविधान के अंतर्गत मूल अधिकारों का संरक्षक सर्वोच्च न्यायालय है।

अनुच्छेद 20 एवं 21 को आपात के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता। अनुच्छेद -21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं है।

आच्छादन का सिद्धांत, पृथक्करणीयता का सिद्धांत और अधित्याग क सिद्धांत संविधान के अनुच्छेद 13 से सम्बंधित है।

संपत्ति के अधिकार को 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा मूल अधिकार से अलग कर दिया गया। वर्तमान में भारतीय नागरिकों को कुल 6 मूल अधिकार प्राप्त है।

संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक के अंतर्गत समता के अधिकार का वर्णन किया गया है।पिछड़े वर्गों हेतु आरक्षण का प्रावधान अनुच्छेद 16(4) के तहत किया गया है।

अनुच्छेद 15 (3) के तहत राज्य को सरकारी नौकरियों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को वरीयता देने की शक्ति प्राप्त है।

संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 के तहत स्वतंत्रता का अधिकार उपबन्धित किया गया है।

अनुच्छेद 21 के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में पंथ निरपेक्षता शब्द 42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया है।

अनुच्छेद 29 एवं 30 के तहत संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी मूल अधिकार उपबन्धित किया गया है।

संविधान का अनुच्छेद 32 संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रदान करता है। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसी अनुच्छेद को संविधान की आत्मा और हृदय कहा है।

86वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार का दर्जा प्रदान किया गया है।

अनुच्छेद 21(क) के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग बालकों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का मूल अधिकार प्रदान किया गया है।

अनुच्छेद-22 के अंतर्गत एक गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार जानने का, गिरफ़्तारी से 24 घण्टे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाने का एवं अपने पसंद के वकील से परामर्श करने का अधिकार है।

मौलिक अधिकारों को लागू करने की शक्ति सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों को दी गई है। नागरिकों के मौलिक अधिकारों में संसद संशोधन कर सकती है।

केशवानंद भारती वाद ने संसद को मौलिक अधिकारों में संशोधन का अधिकार दिया है।

अनुच्छेद 16 (2) के तहत राज्य, सेना या विद्या सम्बन्धी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।

अनुच्छेद 15,16, 19, 29 एवं 30 सिर्फ भारतीय नागरिकों को प्राप्त है। विदेशी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त नहीं है।

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