भारत में सिनेमा का इतिहास बड़ा ही रोचक और गौरवपूर्ण रहा है | इस लेख में हिंदी सिनेमा का इतिहास जानेंगे तथा साथ ही अलग अलग क्षेत्रीय सिनेमा के विकाश की भी चर्चा करेंगे | साथ ही जानेंगे कि भारत में सिनेमा शुरू करने का श्रेय किसे दिया जाता है |
पृष्ठभूमि
आज भारत में हर साल 1500 से 1800 फिल्में हर साल बनती है जो कि विश्व में सर्वाधिक है। इसमे कई भाषाओं और क्षेत्रों की फिल्में शामिल है। देश में मुम्बई, हैदराबाद, चेन्नई, कोच्चि, कोलकाता आदि प्रमुख फ़िल्म निर्माण केंद्र है। 2019 तक भारत में 6300 से ज्यादा सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर तथा 3200 मल्टीप्लेक्स स्क्रीन वाले सिनेमाघर थे।
कुल सिनेमा राजस्व में भी भारत विश्व मे अव्वल है। इसमें हिंदी सिनेमा के बाद क्रमशः तेलगु, तमिल, मलयालम सिनेमा का स्थान है। आज तथाकथित क्षेत्रीय फिल्मों का कुल व्यवसाय हिंदी फिल्मों की तुलना में ज़्यादा हो गया है। डबिंग इंडस्ट्री ने क्षेत्रीय फिल्मों को मुख्यधारा की हिंदी फिल्मों के टक्कर में ला दिया है। यही कारण है कि आज तेलगु, तमिल, मलयालम आदि फिल्मों के स्टार उत्तर भारत में भी घर घर पहचाने और पसन्द किये जाने लगे है।
भारत में सिनेमा का आगमन
भारत में सिनेमा का इतिहास में भारतीय फिल्मों ने लगभग एक शताब्दी के अपने इतिहास में अतितीव्र प्रगति की है। भारत में सिनेमा के आगमन के बारे में जहाँ कुछ जानकार दादासाहेब टोर्ने की श्री पुंडलिक (मराठी भाषा मे 1912 में निर्मित 22 मिनट लम्बी ) को पहली भारतीय फिल्म मानते है , वहीँ ज्यादातर लोग 1913 में दादा साहब फ़ाल्के कृत राजा हरिश्चंद्र को उसकी लम्बी अवधि(40 मिनट) कारण पहली फूल लेंथ की भारतीय फ़िल्म मानते है। ये दोनों ही फिल्में मूक फिल्में थी। दादा साहब फ़ाल्के जो कि भारतीय सिनेमा के पिता माने जाते है, ने अपने जीवनकाल में छोटी बड़ी कुल 122 फिल्में बनाई।
14 मार्च 1931 को अर्देशिर ईरानी निर्मित भारत को पहली बोलती फ़िल्म(हिंदी भाषा में) आलम आरा रिलीज़ हुई। 1933 में पहली तेलगु फ़िल्म सावित्री भी आयी थी ।
भारत में सिनेमा का स्वर्ण काल
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के दौर में मनोरंजन प्रधान फिल्मो का चलन बढ़ा। 1940 से 1960 के दशक का दौर फ़िल्मी इतिहासकार भारतीय सिनेमा का स्वर्ण काल मानते है। इस दौर में सिनेमा को विविधता, लोकप्रियता, राजस्व सभी स्तरों पर अभूतपूर्व सफलता मिली। राजकपूर,दिलीप कुमार, देवानंद जैसे अभिनेता , सहगल जैसे गायक लोकप्रियता के शिखर पर पहुच गए।
इसी दौर में सत्यजीत रॉय जैसे निर्देशकों ने बंगाल में समानांतर सिनेमा की क्रांति ला दी जिसने आगे चलकर 1970 और 1980 के दशक में हिंदी सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी,शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल आदि के दौर में देखने को मिला।
राजेश खन्ना भारतीय सिनेमा के पहले सुपर स्टार माने जाते है। 1969 में आई फ़िल्म आराधना ने उन्हें रातों रात अकल्पनीय तथा अभूतपूर्व प्रसिद्धि दिलवाई। खन्ना जी ने मनोरंजक और सामाजिक फिल्मों में बेहतरीन संतुलन बनाते हुए एक से बढ़कर एक हिट फिल्में दी। उनका 16 लगातार सुपरहिट फिल्मों का रिकॉर्ड आज तक तोड़ा नही जा सका है ।
1973 में ज़ंज़ीर फ़िल्म से हिट हुए अमिताभ बच्चन भारतीय सिनेमा के महानायक कहे जाते है। “वन मैन इंडस्ट्री” कहे जाने वाले बच्चन जी को 4 राष्ट्रीय, 12 फ़िल्म फेयर सहित अनगिनत अवार्ड मिले है।
90’s CINEMA
1990 का दशक तीन खान सरनेम वाले अभिनेताओं सलमान, शाहरुख और आमिर के स्टारडम का समय रहा जो आ भी ज़ारी है। अन्य प्रसिध्द क्षेत्रीय भारतीय अभिनेताओं में MTR, MGR, राजकुमार,चिरंजीवी, रजनीकांत, कमल हसन, नागार्जुन, प्रेसनजीत चटर्जी आदि सर्वप्रमुख है। 21वी सदी ने हृतिक रोशन, अक्षय कुमार, अल्लु अर्जुन, NTR Jr, महेश बाबू, विजय, अजित, रामचरण, आदि ने सुपर स्टारडम को हासिल किया है।
इन सुपरस्टारों से इतर कुछ ऐसे भी अभिनेता रहे है जिन्हें स्टारडम तो नही हासिल पर उनके अभिनय का लोहा हर कोई मानता है। इनमे नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी, मनोज वाजपेयी, के के मेनन, नवाजुद्दीन , पंकज त्रिपाठी ,विजय सेतुपति, प्रकाश राज जैसे अभिनेता प्रमुख है।
अभिनेत्रियों ने भी पुरुष अभिनेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सफ़लता और लोकप्रियता हासिल की है। वहीदा रहमान, वैजयंती माला, जयललिता, सावित्री,हेमा मालिनी, श्री देवी, मधुबाला, माधुरी दीक्षित, दीपिका पदुकोड, कंगना रनौत आदि कुछ प्रमुख अभिनेत्रियां रही है।
भारत मे बढ़ते OTT प्लेटफॉर्म्स के चलन ने वेब सीरीज़ के रूप में रचनात्मक सृजनशीलता की एक नई दुनिया खोली है जो दिन ब दिन बड़ी होती जा रही है। छोटे और अनजाने एक्टर्स को इन प्लेटफॉर्म ने न सिर्फ़ एक्टिंग का मौका दिया है बल्कि घर घर पहचान भी दी है।
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