सिगमंड फ्रायड आस्ट्रिया के मनोवैज्ञानिक थे | फ्रायड ने अपने मनोविश्लेष्णात्मक सिद्धांत में किसी मानव के व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए उसके चेतन,अचेतन और अर्द्धचेतन मन की बात करते हैं साथ इदं, अहम और परा-अहम के द्वारा यह बताते हैं की एक मानव के व्यक्तित्व की तीनों अवस्थाएं किस प्रकार काम करती है . इस पोस्ट में हम आसान भाषा में सिगमंड फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत को समझने का प्रयास करेंगे |
फ्रायड के मूल प्रवित्ति के सिद्धांत में चर्चा करते हुए हमारे जीवन के दो पहलुओं को जीवन की मूल प्रवित्ति मानते है | पहला इरोज़ (EROS) अर्थात जिजीविषा और दूसरा थान्टोस( THANATOS ) मतलब मुमूर्षा | जिजीविषा से आशय जीने की मूल प्रवित्ति , इच्छा , प्रेम , आत्मसंरक्षण और जीवन में होने वाले सकारात्मक पहलुओं से है जबकि मुमूर्षा का आशय मृत्यु की मूल प्रवित्ति और जीवन के नकारात्मक पहलुओं से है | फ्रायड मुमूर्षा को समस्त मानवीय क्रियाशिलाताओं का अंतिम कारण मानते हैं .
फ्रायड अपने सिद्धांत में किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के तीन आवस्थाओं का जिक्र करते हैं .
1. इदम (ID)
2. अहम (EGO)
3 . परा- अहम (SUPER – EGO )
- 1.इदम ( ID)- इदं से आशय मानव की सुख की कल्पना और सुख की लालसाओं है | इदम केवल सुख के सिद्धांत पर आधारित है |इदम को केवल सुख से मतलब है जो जन्मजात होता है | यह सुख की प्रवित्ति पशुविक स्तर तक जाती है क्योंकि इदम सही गलत का भेद नहीं कर सकता वह सिर्फ सुख की कल्पना और लालसा कर सकता है.
- 2.अहम (EGO)- ईगो में चेतना, बुद्धि , तथा तार्किकता है | ईगो अहम् की कल्पनाओं और सुख की लालसा को अपने बुद्धि और तर्क की कसोटी पर कसता है तथा यह डीसाइड करता है की अहम के द्वारा की गयी सुख की कल्पना वास्तिविक जीवन में पूर्ण होने के लिए कितना तार्किक है . ईगो वास्तविक है तथा तार्किक भी .इस तरह अहम इदम को नियंत्रित करता है.अहम वास्तविकता के सिद्धांत से संचालित होता है तथा इदम और परा अहम के बीच समन्वय स्थापित करता है |
- 3.परा – अहम (SUPER –EGO ) सुपर ईगो आध्यात्मिक तथा आदर्शवादी व्यक्तित्व की अवस्था है इसमें अहम के द्वारा लिए गये निर्णयों को एक दिशा प्रदान की जाती है कि उन निर्णयों को पूरा करने के तरीके सामाजिक, नैतिक और आदर्शवादी मूल्यों के अंतर्गत हैं | इस प्रकार अहम को परा अहम के नैतिक और आदर्शवादी मूल्यों द्वारा नियंत्रित किया जाता है |जिस मनुष्य के व्यक्तित्व के अन्दर परा अहम अधिक होता है वह बुरे आचरणों से दूर रहता है |
व्यक्तित्व संरचना
फ्रायड के अनुसार किसी व्यक्तित्व की संरचना में इदं, अहम और परा-अहम तीनो लगातार संघर्षरत रहते हैं . इदम सुख की खोज में रहता है जिसका विरोध परा-अहम द्वारा किया जाता है .क्योंकि इदम सामाजिक मूल्यों से अनजान होता है उसे दुःख से कोई लेना देना नहीं होता है जबकि परा-अहम नैतिक मूल्यों और आदर्शवाद में इदम को अहम के माध्यम से नियंत्रित करने की कोशिश करता है | अहम सामाजिक वातावरण के साथ साथ वास्तविक के सांचे से होकते हुए इदं और परा- अहम के बीच समन्वय स्थापित करता है | इस प्रकार हम देखते हैं कि अहम इदम को नियंत्रित करता है और स्वं परा-अहम के द्वारा नियंत्रित होता है |
सिगमंड फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत मस्तिष्क की तीन अवस्थाओं के बारे में जिक्र करता है |
- चेतन
- अचेतन
- अर्द्धचेतन
सिगमंड फ्रायड के अनुसार हमारा मन या मस्तिष्क पानी में डूबे हुए एक बर्फ की चट्टान की तरह है जिसका अधिकांश भाग पानी के अन्दर होता है तथा कुछ भाग पानी के बाहर होता है . फ्रायड कहते हैं कि बर्फ का जो भाग पानी के ऊपर तैर रहा है वह हमारा चेतन मस्तिष्क है , चेतन मष्तिष्क सम्पूर्ण मस्तिष्क का 1/10 होता है.
बर्फ का वह अधिकांश भाग जो पानी में डूबा हुआ है वह हमारा अचेतन मन है, जो सम्पूर्ण मस्तिष्क का 9/10 होता है तथा बर्फ का वह भाग जो पानी के अन्दर और पानी के बाहर के बीच है वही मस्तिष्क का अर्द्धचेतन भाग है, इसका कोई साइज़ नहीं है|
चेतन मन से अभिप्राय वर्त्तमान समय में मस्तिष्क में संचित सूचनाओं से है जो चीजे हम अपने चेतन मन में संग्रहित कर रहे हैं और जो हमे याद हैं.
अर्द्धचेतन मस्तिष्क में सूचनाएं अभी अचेतन की तरफ जा रही है जो हमे याद तो नहीं है लेकिन मस्तिष्क पर ज्यादा जोर देने पर याद आ जाती है |
अचेतन मन सूचनाओं का समुन्दर है जिसमे हमारी दम्भित इच्छाएं और दुःख दफ़न है या फिर हम यह भी कह सकते हैं जो किसी के माध्यम द्वारा याद दिलाने पर याद आ सकता है या नहीं भी याद सकती है |
सिगमंड फ्रायड का मनोलैंगिग सिद्धांत-
सिगमंड फ्रायड ने मनोलैंगिग सिद्धांत के तहत मानव व्यक्तित्व के विकास को 5 अवस्थाओं में बांटा है |
1 . मौखिक अवस्था – जन्म से 1 वर्ष
2 . गुदा अवस्था – 1 वर्ष से 3 वर्ष तक
3 . लैंगिग अवस्था – 3 वर्ष से 5 वर्ष तक
4 . सुषुप्त अवस्था – 6 वर्ष से 12 वर्ष तक
5 . जननी अवस्था – 12 वर्ष से 20 वर्ष तक
सिगमंड फ्रायड के अनुसार लडको में ओपिड्स ग्रंथि होती है जिसके कारण लड़के अपनी माता से ज्यादा प्यार करते हैं . जबकि लड़कियों में इलेक्ट्रा ग्रंथि होने के कारण लड़कियां अपने पिता से ज्यादा प्यार करतीं है |
सिगमंड फ्रायड के अनुसार किसी व्यक्ति में प्रेम , स्नेह व काम प्रगति को लीबीडो कहते हैं . लीबीडो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसपर नियंत्रण करके व्यक्ति समायोजित हो सकता है .
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