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भारत की पहली, दूसरी और तीसरी पंचवर्षीय योजनाएं

पंचवर्षीय योजनाएं

पहली पंचवर्षीय योजना (1951-1956)


पहली पंचवर्षीय योजना की शुरुवात 1 अप्रैल 1951 को हुई और यह साल 1956 तक चली। जिस समय यह योजना चालु हुई उस समय पुरा देश आर्थिक कठिनाई के साथ साथ अन्य देशों से खाद्यान्न आयात की समस्या एवं मूल्यों में वृद्धि से जूझ रहा था। अतः समसमायिक मुलभुत समस्याओं को दूर करने के लिए इस योजना में सर्वप्रथम कृषि, सिंचाई एवं विद्युत परियोजनाओं को प्राथमिकता दी गई और आम नागरिक की बेसिक नीड पर फोकस किया गया।


पहली पंचवर्षीय योजना में किये गये महत्वपूर्ण कार्य :

पहली पंचवर्षीय योजना में कई सारी आधारभूत परियोजनाओं का शुभारम्भ किया गया जैसे कि भाखरा नांगल परियोजना, दामोदर घाटी परियोजना, हीराकुंड परियोजना मुख्य हैं। साथ ही साल 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम और साल 1953 में राष्ट्रीय प्रसार सेवा जैसे कार्यक्रमों की विधिवत शुरुवात की गई।


निष्कर्ष:

जमीनी स्तर पर किये गए आधारभूत संरचनाओं में परिवर्तन एवं कई सारी परियोजनाओ में निवेश के फलस्वरूप इस योजना ने निर्धारित किये गये तय समय में ही लक्ष्य से ज्यादा की परिणाम की प्राप्ति की।
नोट : पहली पंचवर्षीय योजना को हैरड- डोमर मॉडल भी कहा जाता है।

दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-1961)


दूसरी पंचवर्षीय योजना की शुरुवात साल 1956 में हुई और यह साल 1961 तक चली। लिहाजा देश अभी भी बंद अर्थव्यवस्था एवं संस्थागत पूंजी की समस्या से उबर नहीं पाया था। पहली पंचवर्षीय योजना की अभूतपूर्व सफलता ने दूसरी पंचवर्षीय योजना में तीव्र ओद्योगिकीकरण , भारी उद्योग, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य तथा पूंजीगत माल की प्राथमिकता पर जोर दिया।


दूसरी पंचवर्षीय योजना में किये गये महत्वपूर्ण कार्य :

दूसरी पंचवर्षीय योजना में कई सारे इस्पात संयंत्रो की स्थापना की गई जिसमें राउरकेला (उड़ीसा), दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) एवं भिलाई (छत्तीसगढ़) उल्लेखनीय है। साथ ही पश्चिम बंगाल में इन्टेग्रल कोच फैक्ट्री एवं चितरंजन लोकोमोटीव्स की भी स्थापना की गई।


निष्कर्ष:

पहली पंचवर्षीय योजना की अपेक्षा दूसरी पंचवर्षीय योजना अपने निर्धारित किये गए लक्ष्य से औसत सफल रही।


नोट : दूसरी पंचवर्षीय योजना को नेहरु- महालनोबिस मॉडल भी कहा जाता है।

तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-1966)


तीसरी पंचवर्षीय योजना की शुरुवात साल 1961 में हुई और यह साल 1966 तक चली। इस योजना का मकसद खाद्यान एवं उद्योग में भारत को आत्मनिर्भर बनाना था। यह योजना कई सारे विपदाओं से घिरी रही जिसके कारण इसके सफल संचालन में काफी अवरोध आता रहा। यह पहली योजना थी जिसमें भारतीय इकोनोमी को आत्मनिर्भर बनाने का पुरजोर प्रयास किया गया था लेकिन साल 1962 का भारत-चीन युद्घ, 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध तथा साल 1965-66 का देश में भीषण सूखा पड़ने के कारण यह योजना अपने तय किये निर्धारित लक्ष्यों की भी प्राप्ति नहीं कर सकी। एक तो देश पहले से ही देश विभाजन के दंश से उबर नहीं पाया था और उसपे से दो – दो लड़ाईयों ने इस योजना को धुल धूसरित कर दिया।

तीसरी पंचवर्षीय योजना में किये गये महत्वपूर्ण कार्य :

तीसरी पंचवर्षीय योजना में बोकारो स्टील प्लांट , भारतीय खाद्य निगम (FCI), IDBI बैंक एवं UTI जैसे संस्थाओं की स्थापना की गई।

निष्कर्ष:

पहली और दूसरी पंचवर्षीय योजना की अपेक्षा  तीसरी पंचवर्षीय योजना अपने निर्धारित किये गए लक्ष्य को पाने में असफल रही। भारत-पाक युद्ध, भारत-चीन युद्ध एव्बं भीषण सूखा ने इस योजना को अपंग बना दिया। पूरा समय देश आर्थिक समस्या का सामना करता रहा और अपने को रिकभर करने में ही प्रयासरत रहा।


नोट : तीसरी पंचवर्षीय योजना को जे. सैंडी सुब्रह्मण्यम चक्रवर्ती मॉडल भी कहा जाता है।

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