धर्मपाल गुलाटी

MDH वाले बाबा ‘धर्मपाल गुलाटी’ की ऐसी कहानी जिसे जान कर आप हैरान हो जायेंगे

क्या है MDH ?

MDH यानी कि महाशय दी हट्टी (महाशय की दुकान)

ये सिर्फ नाम नहीं बल्कि एक ब्रांड है जिसने भारतीय मसालों की गुणवत्ता और देशी चटकपन के स्वाद को बरकरार रखा है जिसकी गमक आज भी दूर दराज कई देशों तक जाते रहती है।

कौन हैं महाशय धर्मपाल गुलाटी

महाशय धर्मपाल गुलाटी MDH के फाउंडर महाशय चुन्नी लाल गुलाटी के सुपुत्र थे जिनका 3 दिसम्बर 2020 को ह्रदय के दौरा पड़ जाने के कारण 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया। तांगे से अपने जीवन के सफर की शुरुवात करने वाले इस बाबा ने विश्व में कई सारे कीर्तिमान रचा है। मसाला किंग के नाम से प्रसिद्ध धर्मपाल गुलाटी को भारत सरकार ने विगत साल 2019 में इनकी महत्ता को स्वीकारते हुए इन्हें पदम् भूषण से सम्मानित किया।

धर्मपाल गुलाटी की जीवन यात्रा

धर्मपाल जी का जन्म 27 मार्च 1923 को सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में हुआ था जो कि बाद में देश विभाजन के बाद उनका पूरा परिवार अमृतसर में शिफ्ट हो गया। कुछ समय बाद अमृतसर से इन्होंने दिल्ली की ओर रवानगी की और सन 1953 में दिल्ली के करोलबाग में इन्होंने अपनी  पहली मसाले की दुकान खोली। धीरे धीरे व्यापार का विस्तार करते हुए इन्होंने आगे दिल्ली में ही चांदनी चौक पर दूसरी दुकान खोली। कृति नगर में इनके कम्पनी का मैन्युफैक्चरिंग हब है जहां से कई सारे मसालों के प्रोडक्ट्स का उत्पादन एंव वृहत स्तर पर निर्यात होता है।

कैसे बने धर्मपाल गुलाटी तांगा चालक से मसाला किंग ?

यूं तो जीवन में नेम और फेम पाना इतना आसान नहीं जितना कि फिल्मों में दिखाया जाता है। धर्मपाल गुलाटी जी का जीवन भी इन्ही उतार चढ़ावों के बीच गुजरा है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इनकी पढ़ाई सिर्फ चौथी कक्षा तक हुई है और ये पांचवी फेल हैं। अपने कैरियर के कम्प्लीट होने तक तकरीबन 50 काम छोड़ चुके बाबा को पढने वाले कार्यों में बिल्कुल अभिरुचि नहीं थी। थ्री इडियट्स के करेक्टर की  तरह ही इनके पिताजी भी इन्हें खूब पढ़ाना चाहते थे लेकिन धर्मपाल जी ठीक इसके विपरीत थे। उन्हें पढ़ने में बिल्कुल रुचि नहीं थी और इसी कारण इन्होंने आगे की पढ़ाई कम्प्लीट नहीं की ।

                              हुआ यूं कि जब इनके पिताजी को लगा कि इन्हें पढने में रूचि नहीं है  तो क्यों न इन्हें  लाल मिर्च के दुकान खोल दी जाए। और उस समय सियालकोट लाल मिर्च के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता था। फिर यहीं से सफर शुरू हुआ मसाले किंग का। छोटी सी दुकान से सफर शुरू करने वाले इस बाबा ने आज कई सौ करोड़ का व्यापार स्थापित कर दिया है। ऐसा कोई घर नहीं होगा जहां शादी व्याह में इनकी मसालों की गमक न पहुंचती हो।

धर्मपाल गुलाटी से सीखने वाली प्रमुख बातें

विजन का क्लियर रखना जरूरी है। ये जरूरी नहीं कि जो दुनिया करे वहीं आप आंख बंद करके फॉलो करें। अपनी मेहनत और लगनशक्ति से नया इतिहास रचा जा सकता है। जीवन के सफर में जो भी मुश्किलें आयें उन्हें डटकर सामना करें। फिसलने को आप गिरना न समझे। उठिए और फिर चल दीजिये जहां आपको जाना है। इनकी पुस्तक “तांगे वाला कैसे बना मसालों का शहंशाह” बहुत ही सुंदर एक मोटिवेशनल बुक है जो युवा पीढ़ी को सन्देस देती है कि दुनिया में कुछ भी असम्भव नहीं है।

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