पंचायती राज

पंचायती राज व्यवस्था

भारत में पंचायती राज त्रिस्तरीय सरकार की एक प्रणाली है, जो ग्रामीण स्थानीय स्वशासन  तथा लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की स्थापना के उद्देश्य से बनाई गई है. 73rd  Constitutional Amendment Act 1992 इसे संवैधानिक मान्यता प्रदान करती है.

 स्वतंत्र भारत में इसका उद्गम

 बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई जिसने  निम्नलिखित बातों की अनुशंसा की:-

  •  त्रिस्तरीय पंचायती राज का गठन किया जाना चाहिए. ग्रामीण स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक लेवल पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद.
  •  तीनों ही स्तर के सदस्य जनता द्वारा सीधे ही चुने जाने चाहिए तथा पंचायत समिति और जिला परिषद के चेयरपर्सन indirectly चुने जाने चाहिए
  •  ग्राम पंचायत एक executive body होगी. पंचायत समिति और जिला परिषद advisory, coordinating and   supervisory body होनी चाहिए
  •  जिला परिषद का हेड, कलेक्टर को बनाना चाहिए
  •  सारे विकास तथा योजना के कार्य इनको सौपे  जाएंगे. इनके लिए जरूरी resources, अधिकार और जिम्मेदारियो का  हस्तांतरण भी किया जाना चाहिए

 राजस्थान 1959 में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू करने वाला पहला राज्य बना. जिसे बाद में अन्य राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु  इत्यादि मे  भी अपनाया गया.हालांकि गठन, कार्यप्रणाली, फाइनेंस इत्यादि में काफी अंतर था. उदाहरण के लिए राजस्थान में पंचायती राज्य के तीन स्तर थे, तमिलनाडु में दो और वेस्ट बंगाल में चार.

 इसी दिशा में अन्य कमेटी का भी गठन हुआ. 1977 में जनता सरकार के द्वारा अशोक मेहता कमिटी का निर्माण किया गया. जिसने सोशल ऑडिट, आरक्षण, कर लेने का अधिकार संबंधित कुछ जरूरी सुझाव दिए. 1986 में LM Singhvi कमिटी मैं इसे संवैधानिक मान्यता देने का सुझाव दिया.

 संवैधानिक मान्यता देने के लिए किए गए प्रयास

  •  1989 मे 64th  Constitutional Amendment bill संसद में पेश किया गया, हालांकि राज्यसभा में विरोध के कारण यह कानून नहीं बन पाया.
  •  1991 मे  PV  Narsimha Rao  कि सरकार के  पुनः प्रयास से अंततः यह 73rd Constitutional Amendment Act के रूप में उभरा.

 73rd Constitutional Amendment Act 1992

  •  यह कानून एक नए भाग IX तथा एक नये  schedule 11 को संविधान से जोड़ता है
  •  यह directive principle of State Policy के article 40 को वास्तविक रूप प्रदान करता है
  •  यह कानून representative democracy को participatory democracy मैं बदल देता है

 मुख्य विशेषताएं

  •  ग्राम सभा: यह उस क्षेत्र के पंचायत के सभी पंजीकृत मतदाता का एक सभा होगा.
  •  त्रिस्तरीय प्रणाली: सभी राज्यों में त्रिस्तरीय प्रणाली अनिवार्य होगी. हालांकि उन राज्यों में जिनकी  कुल जनसंख्या 20 लाख से कम है उनमें इस की छूट होगी.
  •  चुनाव:- ग्रामीण, ब्लॉक तथा जिला स्तर के सभी सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा सीधे ही होगा. जबकि  ब्लॉक तथा जिला स्तर में chairperson का चुनाव indirectly होगा.
  •  आरक्षण:- SC/ST के लिए हर पंचायत में उनकी जनसंख्या के अनुसार आरक्षण की व्यवस्था होगी. महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की सुविधा होगी.
  •  कार्यकाल:- पंचायत का कार्यकाल 5 साल तय होगा. पंचायत भंग होने की स्थिति में दोबारा चुनाव 6 महीने के भीतर हो जाना चाहिए
  •  State election commission:- पंचायत में चुनाव कराने के लिए इसका गठन करना सभी राज्यों के द्वारा अनिवार्य होगा
  •  State finance commission:- राज्य के governor के द्वारा state finance commission का गठन हर 5 साल में करना अनिवार्य होगा. यह राज्य के consolidated fund से पंचायत को  दिए जाने वाले पैसे के मापदंडों पर अपना सुझाव देगी
  •  समय-समय पर पंचायत के फंड का ऑडिट करना अनिवार्य होगा
  •  इस कानून का कुछ राज्य जैसे कि मिजोरम, नागालैंड और मेघालय पर लागू नहीं होते हैं.
  •  Fifth Schedule area जो कि आंध्र प्रदेश छत्तीसगढ़ झारखंड इत्यादि राज्यों में है, पर भी यह कानून लागू नहीं होता है.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि पंचायती राज व्यवस्था grassroot level पर visible change लाने में सफल रहा. उदाहरण के लिए जिन पंचायतों के मुखिया महिला थे उन पंचायतों में जल शौचालय सफाई इत्यादि सुविधाओं पर काफी काम किया गया. राजस्थान की छवि राजावत इस काम के लिए जानी जाती है. इसके अलावा यह आम जनता के बीच अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता, सजगता, सरकार के विभिन्न योजनाओं में अपनी भागीदारी बढ़ाने इत्यादि बदलाव लाने में कारगर सिद्ध हुआ है

 पंचायती राज व्यवस्था के पूर्ण सफल होने में निम्न बाधाएं हैं:-

  •  Financial resources की कमी
  •  लोगों में भागीदारी का अभाव
  •  अधिकारी तथा पंचायत के सदस्य के बीच सामंजस्य का अभाव
  •  बहुत से राज्यों में जैसे कि झारखंड मैं भिन्न कारणों से जैसे कि कोरोना की वजह से  चुनाव सही समय पर नहीं हो पाये हैँ
  •  ग्राम सभा समय-समय पर अपनी मीटिंग नहीं रखती है

 पंचायती राज व्यवस्था को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए निम्न सुझाव:-

  •  पंचायती राज को आर्थिक रूप से और अधिक स्वतंत्र बनाना होगा
  •  लोगों में जागरूकता बढ़ानी होगी
  •  Information Communication And Technology का प्रभावी इस्तेमाल
  •  योजना और विकास के कार्य  ग्राम पंचायत को केंद्र में रखकर करना होगा
  •  Social audit समय-समय पर होते रहना चाहिए
  •  ग्राम सभा के meeting पर कम से कम दो तिहाई सदस्य उपस्थित रहने चाहिए

 किसी भी लोकतंत्र की मजबूती सभी की सहभागिता तथा जवाबदेही पर निर्भर करती है. पंचायती राज व्यवस्था इसी दिशा में किया गया एक बेहद यथार्थ प्रयास है जो जमीनी स्तर पर लोकतंत्र  का निर्माण करती है. इस तरह यह संविधान में उल्लेखित जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए सरकार तथा महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज्य के सपने को साकार करती है.

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