राज्य सभा

राज्य सभा (Council of State)

राज्य सभा क्या है

● भूमिका

भारतीय संसद की परिभाषा लोकसभा, राज्य सभा और राष्ट्रपति को मिलाकर परिभाषित की गई है। राज्य सभा संसद का द्वितीय सदन होता है जिसे ‘उच्च सदन’ भी कहा जाता है। अंग्रेजी में राज्य सभा को Council Of State कहा जाता है। राज्य सभा में राज्यों के सदस्य होते हैं जो राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लोक सभा की तुलना में राज्य सभा की शक्तियाँ अपेक्षाकृत बहुत ही कम है फिर भी कौंसिल ऑफ स्टेट की अपनी महत्ता और उपयोगिता है जिसे नकारा नहीं जा सकता।

● राज्य सभा का गठन

राज्य सभा का गठन संविधान के अनुच्छेद 80 के तहत किया गया है जिसमें सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है। कुल 250 सदस्यों की संख्या में जहाँ 238 भारत के कुल राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से चुने जाते हैं। वहीं 12 सदस्यों का मनोनयन भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। सदस्यों का मनोनयन कला, विज्ञान, साहित्य और समाजसेवा से जुड़े अनुभव और उनके विशेष ज्ञान के आधार पर तय किया जाता है।

फिलहाल राज्य सभा में राज्य सभा सांसदों की संख्या 245 है जिसमें 229 सांसद अलग अलग राज्यों से और 4 सांसद संघ राज्य क्षेत्रों से निर्वाचित किये जाते हैं। शेष 12 सांसदों का मनोनयन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।

संघ राज्य क्षेत्रों में सिर्फ दिल्ली और पांडिचेरी ही ऐसे दो केंद्रशासित प्रदेश हैं जिनसे राज्य सभा के सदस्य निर्वाचित किये जाते हैं। बाकी इन दोनों के अलावा अन्य केंद्रशासित प्रदेशों जैसे कि अंडमान निकोबार, चंडीगढ़, लक्षद्वीप इत्यादि से राज्य सभा के प्रतिनिधि निर्वाचित नहीं होते।

● सदस्यों का निर्वाचन

राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के विधान सभाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। इसमें सिर्फ जनता द्वारा चुने गए राज्य के विधायक प्रतिनिधि ही भाग लेते हैं। यह ध्यान रखने योग्य बात है कि राज्य सभा के सदस्यों के निर्वाचन में विधान सभा के मनोनीत सदस्य भाग नहीं लेते।

राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा होता है। राज्य सभा में स्थानों के आवंटन की सूची संविधान की अनुसूची – 4 में वर्णित किया गया है।

राज्य सभा के उम्मीदवार होने के लिए उस राज्य का निवासी होना अनिवार्य नहीं है जहाँ से किसी को राज्य सभा का चुनाव लड़ना है।

जहाँ एक तरफ लोक सभा और विधान सभा के चुनावों में गुप्त मतदान का प्रयोग होता है वहीं राज्य सभा के चुनावों में खुले मतदान का प्रावधान किया गया है।

राज्य सभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व समानता के आधार पर न होकर राज्यों की जनसँख्या के आधार पर तय किया गया है। यही कारण है बड़े राज्यों से राज्य सभा में अधिक उम्मीदवार चुने जाते हैं और छोटे राज्यों से कम।

● सदस्यों की योग्यताएं

लोकसभा और राज्य सभा के सदस्य चुने जाने की योग्यता एक ही है। अंतर सिर्फ उम्मदीवार के लिए तय किये गए न्यूनतम आयु वर्ष का है। जहां एक तरफ लोक सभा के सदस्य होने की न्यूनतम आयु 25 वर्ष है वही राज्य सभा के सदस्य होने की न्यूनतम आयु 30 वर्ष है।

● राज्य सभा का कार्यकाल

राज्य सभा एक स्थायी सदन है जिसका कभी विघटन नहीं होता। इसके एक तिहाई सदस्य हर दूसरे वर्ष की समाप्ति पर अवकाश ग्रहण करते रहते हैं। यह एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें एक सदस्य का स्थान रिक्त होते ही अगले सदस्य का तय अवधि में ही निर्वाचन कर लिया जाता है। एक राज्य सभा सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।

● राज्य सभा की शक्तियाँ और कार्य

राज्य सभा का गठन लोक सभा के सहयोगी और सहायक सदन के रूप में किया गया है। जिसमें लोकसभा के साथ साथ राज्य सभा को भी विधि निर्माण की शक्ति प्रदान की गई है। वित्त विधेयक को छोड़कर बाकी अन्य अवित्तीय विधेयक को राज्य सभा में प्रस्तुत करने का अधिकार है। क्योंकि वित्त विधेयक सिर्फ लोक सभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है, राज्य सभा में नहीं।

देखा जाए तो जितने भी महत्वपूर्ण विधेयक यथा वित्त विधेयक लोक सभा में ही प्रस्तावित किये जाते हैं। राज्य सभा को तो बस एक बार उसको जैसे किसी किताब की प्रूफ रीडिंग के लिए भेजा जाता है। राज्य सभा, लोक सभा से प्रस्तावित साधारण विधेयक को सिर्फ 6 महीनों के लिए ही होल्ड कर सकती है।

वित्त विधेयक को राज्य सभा सिर्फ 14 दिनों तक ही अपने पास होल्ड कर सकती है। 14 दिनों के उपरांत वह वित्त विधेयक राज्य सभा से प्रस्तावित मान कर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाता है। हालांकि राज्य सभा तय समयावधि में सुधार की सिफारिश कर सकती है लेकिन सिफ़ारिश को मानने के लिए लोक सभा विवश नहीं है।

संविधान संशोधन (आर्टिकल 368) के विषय में लोक सभा और राज्य सभा दोनों को समान अधिकार प्रदत है। संविधान संशोधन विधेयक के मामले में विधेयक तभी पारित माना जायेगा जब राज्य सभा उक्त विधेयक को पारित कर दे। किसी भी बिंदु पे असहमति होने पे राज्य सभा इस संविधान संशोधन विधेयक को अस्वीकार कर सकती है। संविधान संशोधन विधेयक लिए संविधान में कहीं भी संयुक्त अधिवेशन करने का वर्णन नहीं किया गया है।

राष्ट्रपति द्वारा उद्घोषित राष्ट्रीय आपात की स्वीकृति सिर्फ लोक सभा से पारित होना आवश्यक नहीं बल्कि यह दोनों सदनों द्वारा पारित होना आवश्यक है।

राज्य सभा के निर्वाचित सदस्य को राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने का अधिकार है।

राज्य सभा चाहे तो बहुमत से प्रस्ताव को पास करके उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटा सकती है। हालांकि इसके लिए लोक सभा द्वारा प्रस्ताव पर सहमत होना आवश्यक है। प्रस्ताव प्रस्तुत भले ही राज्य सभा करे लेकिन उसका अनुमोदन लोक सभा द्वारा करना अनिवार्य है।

राज्य सभा को राज्य सूची में वर्णित किसी अमुक विषय पर जो कि राष्ट्रीय हित में हो, अनुच्छेद 249 के तहत उस विषय पर कानून का निर्माण कर सकती है। इसके लिए राज्य सभा के सत्र में उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होना अनिवार्य है।

राज्य सभा को अनुच्छेद 312 के तहत नई अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन का विशेषाधिकार है। यह सिर्फ राज्य सभा से ही शुरू हो सकता है, लोकसभा से नहीं। इसके लिए भी राज्य सभा के सत्र में उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होना अनिवार्य है।

● राज्य सभा से जुड़ी कुछ अन्य जानकारियां

3 अप्रैल 1952 को कौंसिल ऑफ स्टेट्स के नाम से राज्य सभा का गठन हुआ था जिसकी प्रथम सभापति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे।

23 अगस्त 1954 को कौंसिल ऑफ स्टेट्स राज्य सभा के नाम से उद्घोषित हुई।

राज्य सभा के दो प्रमुख पदाधिकारी सभापति और उपसभापति हैं। जहां सभापति को अंग्रेजी में चेयरमैन कहते हैं वहीं उपसभापति को अंग्रेजी में डिप्टी चेयरमैन कहते हैं।

भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है तथा इसी सभापति के पद एवं दायित्व के निर्वहन हेतु उपराष्ट्रपति का वेतन दिया जाता है न कि उपराष्ट्रपति पद के लिए।

उपराष्ट्रपति राज्य सभा का सिर्फ सभापति होता है, राज्य सभा का सदस्य नहीं होता। इसी कारण सभापति के तौर पर उसका कार्यकाल सिर्फ 5 वर्ष का होता है।

राज्य सभा के उपसभापति का निर्वाचन राज्य सभा के अपने ही सदस्यों में से 6 वर्ष के लिए किया जाता है।

राज्य सभा में राष्ट्रपति द्वारा 12 सदस्यों एक मनोनयन का सिद्धांत आयरलैण्ड के संविधान से लिया गया है।

अनुच्छेद 249 एवं अनुछेद 312 संविधान द्वारा राज्य सभा को दिया गया दो विशेषाधिकार है।

राज्य सभा कभी भी किसी मंत्रिपरिषद के खिलाफ संसद के सदन में अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकता।

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