भारत में मिट्टी के प्रकार और उनकी विशेषताएं mitti ke prakar
Types of soil in India और भारतीय मिट्टियों का वर्गीकरण न सिर्फ UPSC, PCS और एग्जाम का सिलेबस है बल्कि कृषि विज्ञान और दैनिक जीवन में काम आने वाली Important Topic भी है। मिट्टी के प्रकार जानने से पहले हम यह समझ लें कि मृदा या मिट्टी Soil क्या है ?
पृथ्वी की सबसे उपरी परत को मृदा या मिट्टी Soil कहा जाता है जिसका निर्माण किसी टूटे हुए चट्टानों के छोटे महीन कणों, जैविक पदार्थो, खनिज- लवण, बैक्टेरिया इत्यादि के मिश्रण से होता है। भारत में पाए जाने वाली मिट्टियों के अलग अलग विशेषता एवं गुणवत्ता है। क्योंकि यह मिट्टी न सिर्फ पेड़ पौधों को पोषक तत्व पहुंचाने का कार्य करती है बल्कि धरती को खाद्यान्नों से संपूर्ण भी करती है।
मिट्टी के प्रकार इन हिंदी में आर्टिकल पढ़ने के बाद आप यह आसानी से समझ पाएंगे कि मिट्टी के प्रकार कितने होते हैं, भारत की मिट्टियों के प्रकार और उनका वितरण क्या है। साथ ही यह भी समझ पाएंगे कि जलोढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल मिट्टी, लैटेराइट मिट्टी में मुख्य अंतर क्या है।
◆ मिट्टी के प्रकार, कारण और परिणाम mitti ke prakar
भारत के किसी राज्य में जलोढ़ मिट्टी का होना तो किसी राज्य में काली मिट्टी का होना, उस राज्य की भौगोलिक स्थितियों के कारण होता है।भौगोलिक विशिष्टता, उच्चावच और जलवायु के कारण भारत में कई प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं। Indian Council for agricultural Research (ICMR) के अनुसार भारत में 8 प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं जो निम्नलिखित है
1.जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soils)
2.काली मिट्टी (Black or Regur Soils)
3.लाल एवं पीली मिट्टी (Red and Yellow Soils)
4.लैटराइट मिट्टी (Laterite Soils)
5.शुष्क या रेतीली मृदा (Arid soils)
6.लवण मृदा (Saline soils)
7.पीटमय मृदा (Peaty soil) एवं
8.पर्वतीय मिट्टी (Mountain soil)
◆ मिट्टी के प्रकार और उनकी विशेषताएं Soil types in India
इस आर्टिकल में आपको एक एक करके मिट्टी के प्रकार और उनके गुण, मिट्टी के प्रकार Types एवं मिट्टी के प्रकार का चार्ट बताया जा रहा है।
1. दोमट या जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soils)
उपरोक्त वर्णित आठों प्रकार की मिट्टियों में जलोढ़ मिट्टी सबसे उपजाऊ होती है। साथ ही यह भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों के प्रकार का कुल 43% है। जलोढ़ मिट्टी को है , दोमट मिट्टी, कांप मिट्टी या कछारी मिट्टी भी कहा जाता है। उत्तर भारत में जलोढ़ मिट्टी का अत्याधिक उपजाऊ होने का मुख्य कारण सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियों द्वारा जमा किए गए तलछट है जो अपने साथ कई पोषक तत्वों को साथ में बहा कर लाती हैं और मैदान को हमेशा उपजाऊ नवीनीकृत करते रहती हैं। जलोढ़ मिट्टी मूलतः हिमालय के निक्षेपण से ही निर्मित है।
● जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र Jalodh mitti ka kshetra
जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र उत्तर भारत में सतलज मैदान से लेकर ब्रह्मपुत्र के मैदान तक फैला हुआ है। उत्तरी राजस्थान से लेकर पंजाब, उत्तर प्रदेश बिहार, पश्चिम बंगाल, असम तथा भारत के पूर्वी तट जलोढ़ मिट्टी के प्रमुख क्षेत्र हैं। भारत के तटीय क्षेत्रों में यह जलोढ़ मिट्टी पूर्वी तट में पतली पट्टी की तरह विस्तारित है जो उड़ीसा से लेकर आंध्र प्रदेश तक को कवर करती है।
● जलोढ़ मिट्टी कितने प्रकार की होती हैं Types of Jalodh Mitti
जलोढ़ मिट्टी को दो भागों में विभाजित किया गया है :
क). खादर : खादर को ही नई जलोढ़ मिट्टी कहा जाता है। क्योंकि यह प्रत्येक साल नदियों के द्वारा जमा किए गए पोषक तत्वों से नवीनीकृत होते रहती है। खादर मृदा का निर्माण हमेशा नदियों के समीप होता है जिसके कारण यह सब से अत्यधिक उपजाऊ मिट्टी होती है। फसल उत्पादन की गुणवत्ता और उत्पादकता की दृष्टि से खादर मिट्टी बहुत ही उपयोगी है।
ख). बांगर : बांगर को पुरानी जलोढ़ मिट्टी कहा जाता है क्योंकि यह प्रत्येक साल नदियों के द्वारा लाए गए निक्षेप द्वारा नवीनीकृत नहीं होती है। बांगर का निर्माण नदियों के मुहाने से दूर होने के कारण ही यह खादर मृदा से कम उपजाऊ होती है। बार बार नई मिट्टियों के निक्षेपण न होने के कारण बांगर मिट्टी, खादर मिट्टी की तुलना में कम पोषक तत्वों से पोषित होती है। फलस्वरूप पुरानी यानी कि बांगर मृदा ज्यों की त्यों पड़ी रहती है जिसके कारण इसमें हमेशा उर्वरक या खाद की आवश्यकता पड़ती है।
● जलोढ़ मिट्टी की फसलें Jalodh mitti ki fasal
चूंकि जलोढ़ मिट्टी नदियों के समीप होने के कारण काफी उपजाऊ और भरपूर नमी वाली मिट्टी होती है। इसलिए चावल, गेँहू, गन्ना, जुट,मक्का, शाक-सब्जी तथा दालों की खेती जलोढ़ मिट्टी में विशेष रूप से की जाती है।
👉 जलोढ़ मिट्टी से सम्बंधित फैक्ट्स
° अत्यधिक उपजाऊ
° नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं ह्यूमस की कमी
° जैव पदार्थ,चूना एवं पोटेशियम की प्रचुरता
° समूचे मिट्टियों के वितरण का 43%
° जल धारण क्षमता कम
° रंग – हल्के धूसर या भस्मी धूसर
2. लाल मिट्टी या लाल मृदा की विशेषताएं Lal mitti kise kahte hai
लाल मिट्टी का नाम या लाल मिट्टी होने का कारण इस मिट्टी में पाए जाने वाले Iron Oxide की मात्रा है। लाल मिट्टी में Iron Oxide की अधिकता के कारण ही दक्षिण भारत व पठारी भागों की मिट्टियाँ लाल रंग की होती हैं जो किसी दक्कन पठार के अपक्षय और चट्टानों की कटी हुई मिट्टी की ही रूप है।
लाल मिट्टी भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों के प्रकार का कुल 18% है जो कि जलोढ़ मिट्टी के बाद भारत में पाई जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी मृदा है।
● लाल मृदा का क्षेत्र Lal Mitti ka kshetra
लाल मिट्टी का विस्तार दक्षिण भारत के मुख्यतः पठारी भागों के पूर्वी तट तक है जो कि तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा,पूर्वी मध्यप्रदेश, झारखंड तथा नॉर्थ ईस्ट के कुछ क्षेत्र हैं।
👉 भारत में सबसे ज्यादा लाल मिट्टी तमिलनाडु में पाई जाती है।
● लाल मिट्टी की फसलें Lal mitti ki fasal
गेँहू, चावल, बाजरा, ग्राम, तिलहन लाल मिट्टी में उपजायी जाने वाली प्रमुख फसलें हैं।
👉 लाल मिट्टी से सम्बंधित फैक्ट्स
° समूचे मिट्टियों के वितरण का 43%
° कम वर्षा वाले क्षेत्रों में लाल मिट्टी का होना
° नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं ह्यूमस की कमी
° सिलिका एवं आयरन की प्रचुरता
° 6.5 लाख वर्ग किमी. का क्षेत्रफ़ल
° भींग जाने के बाद मिट्टी का पीले रंग का दिखना
3. काली मिट्टी या काली मृदा Kali Mitti kaisi hoti hai
बेसाल्ट लावा चट्टानों के अपक्षय एवं अपरदन के फलस्वरूप काली मिट्टी का निर्माण होता है। इसलिए इसे लावा मिट्टी भी कहा जाता है। काली मिट्टी कपास की खेती के लिए अत्यधिक उपयोगी मानी जाती है। काली मिट्टी में कपास की खेती होने के कारण ही इसे काले कपास की मिट्टी भी कहा जाता है। काली मिट्टी को ही कपासी मृदा, रेगुर मृदा, ट्रॉपिकल ब्लैक अर्थ , तथा UP में कहीं कहीं इसे करेल मृदा भी कहा जाता है। सूखने के उपरांत इस मिट्टी में दरार पर जाने के कारण ही इसे स्वतः जुताई वाली मिट्टी भी कहा जाता है।
काली मिट्टी में अत्यधिक मात्रा में चूना, मैंगनीशियम कार्बोनेट तथा लौह अयस्क की मात्रा पाई जाती है जिसका मुख्य कारण लावा चट्टानें हैं। काली मिट्टी का मुख्य विस्तार उत्तरी कर्नाटक से लेकर महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश तथा गुजरात तक है।
👉 सबसे ज्यादा काली मिट्टी महाराष्ट्र में पाई जाती है।
शुष्क कृषि, जहाँ जल की आवश्यकता कम हो वहां के लिए काली मिट्टी सबसे उपयोगी है।काली मिट्टी की जलधारण क्षमता बहुत ही तीव्र होती है फलस्वरूप यह ज्यादा नमी धारित रखती है। इसी कारण काली मिट्टी को सिंचाई को जरूरत बहुत ही कम पड़ती है। यह दक्कन पठार और मालवा पठारों की प्रमुख मिट्टी है। काली मिट्टी पानी से भींग जाने पर ठोस एवं चिपचिपी हो जाती तथा पानी सूख जाने पर दरारयुक्त हो जाती है।
● काली मिट्टी की फसलें Kali Mitti ki fasal
गन्ना, गेंहु, मूंगफली, कपास काली मिट्टी में उपजायी जाने वाली प्रमुख फसलें हैं।
👉 काली मिट्टी से सम्बंधित फैक्ट्स
° समूचे मिट्टियों के वितरण का 15%
° तीव्र जल धारण क्षमता
° नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं ह्यूमस (जैविक पदार्थों) की कमी
° कपास की खेती के लिए सर्वोत्तम
° क्षेत्रफल 5 लाख वर्ग किमी. तक
4. लैटेराइट मिट्टी Laterite soil ya laterite mitti kaisi hoti hai
लैटेराइट शब्द का साधारण सा अर्थ है ‘ईंट’ यानी कि ऐसी मिट्टी जो भींग जाने या गीला हो जाने पर मक्खन के समान मुलायम हो जाती है और सूख जाने के बाद किसी ईंट की भांति कड़ी और ढेलेदार हो जाती है। ईंट के समान टाइट हो जाने के कारण ही इसे लैटेराइट मिट्टी की संज्ञा दिया गया है। इस मिट्टी में लोहे की ऑक्साइड की मात्रा अधिक होने के कारण इसका रंग लाल होता है। लैटेराइट मिट्टियों के निचले भागों की तुलना में लैटेराइट मिट्टी का ऊपरी भाग ज्यादा अम्लीय होता है।
लैटेराइट मिट्टी का निर्माण भारी मात्रा में तीव्र विक्षालन के फलस्वरूप होता है जो कि सबसे ज्यादा उष्णकटिबंधीय वर्षा वाले क्षेत्रों में होता है। मुख्य रूप से लैटेराइट मिट्टी अपलाक्षित मिट्टी का ही प्रकार है जो कहीं से पानी के बहाव में बही हुई मिट्टी होती है जिसकी उर्वरता क्षमता कम होती है। लैटेराइट मिट्टी में लौह ऑक्साइड तथा एल्युमिनियम ऑक्साइड की प्रचूर मात्रा तथा नाइट्रोजन, पोटाश, चूना एवं कार्बनिक तत्वों की कमी होती है।
● लैटेराइट मिट्टी का क्षेत्र Laterite mitti ka kshetra
लैटेराइट मिट्टी का विस्तार केरल, पूर्वी तमिलनाडु, ओडिसा, छोटा नागपुर पठार, मेघालय तथा पश्चिमी घाट के पर्वतीय क्षेत्रों तक है। ये सारे क्षेत्र बारिश वाले क्षेत्र है जहां सबसे ज्यादा बारिश होती है। लैटेराइट मिट्टी का क्षेत्रफ़ल 1.26 लाख वर्ग किमी. तक फैला हुआ है तथा यह कुल मिट्टियों का 3.7% है।
👉 सबसे ज्यादा लैटेराइट मिट्टी केरल राज्य के मालाबार वाले तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
● लैटेराइट मिट्टी की फसलें Laterite mitti ki fasal
कपास, चावल, काजू, गन्ना, चाय, कहवा इत्यादि लैटेराइट मिट्टी में उपजायी जाने वाली प्रमुख फसलें हैं।
👉लैटेराइट मिट्टी से सम्बंधित फैक्ट्स
° उर्वरता कम
° अपक्षालित मिट्टी का प्रकार
° कुल क्षेत्रफ़ल 1.26 लाख वर्ग किमी.
° चाय एवं कॉफी उत्पादन योग्य मृदा
5. पर्वतीय मिट्टियाँ ( Mountain Soils)
Parvatiya Mitti kise kahte hai
Parvatiy mitti ki visheshta
पर्वतीय मिट्टियाँ हिमालय की घाटियों तथा उनके ढालों के बीच पाई जाती है। पर्वतीय मिट्टियाँ अपरिपक्व और छिछली प्रकार की होती हैं जो कि हिमालय की 2700 मीटर से 3000 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं। पर्वतीय मिट्टी हल्की अम्लीय होती है जिसमें कार्बन और नाइट्रोजन अनुपात ज्यादा होता है।
👉पर्वतीय मिट्टी से सम्बंधित फैक्ट्स
° 2700 मी• से 3000 मी• की ऊंचाई पर
° नदी घाटियों में दोमट और सिल्टदार
° ऊपरी ढ़लानों पर मोटे कणों
° घाटी के निचले क्षेत्रों में अत्यधिक उपजाऊ
° मक्का, चावल, फल, तथा चारे की फसल हेतु उपर्युक्त
6. शुष्क और रेतीली मृदा Retili Mitti kya hai
Retili mitti ki fasal
शुष्क और रेतीली मृदा को ही मरुस्थलीय मिट्टी भी कहा जाता है। शुष्क और रेतीली मृदा का विकास वहां के शुष्क और अर्द्ध शुष्क जलवायु दशा और दिशाओं के फलस्वरूप हुआ है। क्योंकि राजस्थान में दिन के समय चट्टानों के फैलाव और रात के समय सिकुड़न की वजह से वहां मरुस्थलीय मिट्टी का निर्माण हुआ है।
● रेतीली मिट्टी का क्षेत्र Retili mitti ka kshetra
मरुस्थलीय मिट्टी का क्षेत्रफल राजस्थान से लेकर, सौराष्ट्र,गुजरात, कच्छ, दक्षिणी पंजाब एवं हरियाणा के दक्षिण-पश्चिमी भागों तक है।
मरुस्थलीय मिट्टी मुख्यतः रेत और बजरी से निर्मित मिट्टी है जिसमें जैव पदार्थों तथा नाइट्रोजन की भारी कमी पाई जाती है।
👉मरुस्थलीय मिट्टी से सम्बंधित फैक्ट्स
° कम उपजाऊ मृदा
° मिट्टी का रंग लाल और भूरा
° मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा भी बहुत कम
° सिंचाई तथा उर्वरक की आवश्यकता
° मुख्यतः बाजरा, दलहन तथा चारे की फसल हेतु उपर्युक्त
7. लवणीय मृदा (Saline soils) Lavniya mitti kya hai
जिस मिट्टी में घुलनशील लवणों की अधिकता एवं बहुलता के कारण बीजों का अंकुरण और पौधों का विकास बाधित होता है तो ऐसी ही मृदा को लवणीय मृदा की संज्ञा दी जाती है। लवणीय मृदा में सोडियम और मैंगनीशियम की अधिकता होती है। इसलिए लवणीय मृदा में लवण प्रतिरोधी फसल या फसल चक्रों का उचित चयन करके ही खेती करने में ही समृद्धि है।
● लवणीय मिट्टी की फसलेंLavniya mitti ki fasal
ज्वार, बाजरा जई ,लोबिया, करनाल घास,नेपियर चारा लवणीय मृदा की मुख्य फसलें हैं।
👉 सबसे ज्यादा लवणीय मृदा गुजरात में पाई जाती है।
चूंकि लवणीय मृदा फसलों के लिए उपयुक्त नहीं होती है क्योंकि लवणीय मृदा का pH मान कम होता है। सामान्यतः एक फसल उगाने के लिए नॉर्मली मिट्टी का pH मान कम से कम 6.0 से लेकर 7.0 के मध्य होना उचित माना जाता है।
8. पीटमय मिट्टी (Peaty soil)
Pitmay mrida
Pitmay mrida ka kshetra
पिटमय मिट्टी को ही जैविक मिट्टी या दलदली मिट्टी के नाम से जाना जाता है। चूंकि यह मिट्टी जैविक पदार्थों से सम्पूर्ण रहती है फलस्वरूप यह फसल उत्पादन के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। भारत में पिट मिट्टी का मुख्य क्षेत्र केरल, उत्तराखंड,बिहार के उत्तरी भाग,उड़ीसा, तमिलनाडु एवं पश्चिम बंगाल है।
पिट मिट्टी में फॉस्फोरस एवं पोटाश की मात्रा कम होती है साथ ही इस मिट्टी में लवण की मात्रा भी अत्यधिक होती है। पिटमय मिट्टी भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं। इसलिए इस मिट्टी में मृत जैव पदार्थों की मात्रा ज्यादा होती है जो कि इस मृदा को ह्यूमस और पर्याप्त जैव तत्त्व Provide करते हैं।
पिट मिट्टी में जैव पदार्थों की मात्रा तकरीबन 40 से 50 प्रतिशत तक होती है। पिट मिट्टी नॉर्मली गाढ़े और काले रंग की होती हैं।
👉 पीटमय मृदा से सम्बंधित फैक्ट्स
° एक लाख वर्ग किमी का क्षेत्र
° वनस्पति की अच्छी पैदवार
° मिट्टी काली, भारी एवं अम्लीय
° चावल एवं गन्ने की भी कृषि हेतु उपयुक्त
● अभी तक अपने Types of soil in India यानी कि भारत में मिट्टी के प्रकार को अच्छे से समझ लिया होगा। भारत में मिट्टी के प्रमुख प्रकारों को हमने विस्तार से वर्णन किया है ताकि आपको जलोढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल मिट्टी, लैटेराइट मिट्टी, लवणीय मृदा इत्यादि में मुख्य अंतर समझ में आ सके। Types of mitti in hindi अगर आपको अच्छा लगा हो तो इस जानकारी को आगे तक शेयर करें ताकि ज्ञान का दीप घर घर जलता रहे।
mitti ke prakar
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