raound table conference

गोलमेज सम्मेलन (1930-1932)

प्रथम गोलमेज सम्मेलन :

साइमन कमिशन की रिपोर्ट की अनुशंसा एवं उसके दिशानिर्देशों को कांग्रेस एवं भारतीय समाज के समक्ष स्पष्टीकरण करने हेतु तात्कालिक वायसराय लार्ड इरविन एवं ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री रैमजे मैकडोनाल्ड ने एक गोलमेज सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई। यह गोलमेज सम्मेलन तीन चरणों में सम्पूर्ण हुआ जिसकी विवेचना निम्नवत है :

साइमन कमिशन की रिपोर्ट एवं संवैधानिक मुद्दों पर जमीनी स्तर पर राय विमर्श करने हेतु 12 नवम्बर 1930 को लन्दन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हुआ। यह ब्रिटिश सरकार एवं भारतीय प्रतिनिधियों के बिच समान स्तर पर आयोजित की जाने वाली पहली वार्ता थी। कांग्रेस ने प्रथम गोलमेज सम्मेलन का पूर्ण रूप से बहिष्कार किया जिसके फलस्वरूप इस सम्मेलन में मुख्यतः उन्हीं दलों के लोगों ने भाग लिया जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से ब्रटिश सरकार की खुशामद चाहते थे जैसे कि मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा, दलित वर्ग, उदारवादियों का समूह एवं भारतीय रजवाड़े। 89 भारतीय प्रतिनिधियों में से कांग्रेस के एक भी प्रतिनिधि ने भाग नहीं लिया।

यह सर्वविदित है की सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों के चयन का मापदंड एक समान नहीं था। सब कहीं न कहीं ब्रिटिश सरकार के तथाकथित कठपुतली समान थे जिनमें से कुछ  भारतीय प्रतिनिधियों का चयन या तो वायसराय की सिफारिश से की गई थी या तो भारतीय रजवाड़ों के मनोनयन से। इस आयोजन में सम्मिलित कुल प्रतिनिधि अपने व्यक्तिगत हितों के पोषक थे जिन्हें देश की आजादी से ज्यादा निजी हित की चिंता थी। कारण यही रहा कि आयोजन से सम्बन्धित समस्याएं  वहीँ की वहीँ धरी रह गई और कोई ठोस परिणाम हासिल नहीं हो सका। अंततः 12 नवम्बर 1930 को शुरू हुआ सम्मेलन 19 जनवरी 1931 को बुझे हुए राख की तरह समाप्त हो गया।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन :

प्रथम गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी को दुसरे गोलमेज सम्मेलन में वार्ता करने के लिए राजी किया क्योंकि ब्रिटिश सरकार को पता था की बिना गांधीजी के पहल उनकी साड़ी योजनायें धरी की धरी रह जायेगी। द्वितीय सम्मेलन में गाँधीजी ही एक मात्र कांग्रेसी थे जो 29 अगस्त 1931 को राजपुताना जहाज से ब्रिटेन के लिए रवाना हुए। उनके साथ इस वार्ता में मदन मोहन मालवीय, देवदास गाँधी, सरोजनी नायडू, एनी बेसेंट, घनश्याम दास बिड़ला, मीरा बेन एवं महादेव देसाई जैसे अन्य गणमान्य लोग  भी सम्मिलित थे जो अलग अलग दलों से सम्बन्धित थे।

यह सम्मेलन भी रुढ़िवादी, साम्प्रदायिक तथा ब्रिटिश सरकर की खुशामद करने वालों राजभक्तो के कारण पूर्णत असफल हुआ। ब्रिटिश सरकार की गांधीजी की प्रति द्वेष एवं कांग्रेस के प्रति ओछी मनसिकता ने इस सम्मेलन को कभी सफल नहीं होने दिया। साथ ही मुसलमानों, ईसाईयों, आंग्ल भारतीयों एवं दलितों के नुमाइंदों ने अपनी जाति या धर्म विशेष पृथक प्रतिनिधित्व की अलग राग अलापने लगे। भीम राव अम्बेडकर ने पृथक निर्वाचन मंडल की मांग की जिसे गाँधी जी ने अस्वीकार कर दिया। पुरे सम्मेलन में ब्रिटिश सरकार भारतीयों की मूल मांग ‘स्वतंत्रता’ पर चुप्पी साधे रही जिसका नतीजा यह हुआ कि गाँधीजी नाराज होकर इस सम्मेलन के निर्णयों को अस्वीकार किया और फिर से सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया। भारत पहुँचते गांधीजी ने कहा ‘यह सच है कि मैं खाली हाथ लौटा हूँ किन्तु मुझे संतोष है कि जो ध्वज मुझे सौंपा गया था,उसे नीचे नहीं होने दिया और उसके सम्मान के लिए समझौता नहीं किया।

इस सम्मेलन में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रैमजे मैकडोनाल्ड ने दो मुस्लिम प्रान्तों यथा उत्तरी-पश्चिमी सीमांत प्रान्त एवं सिंध के गठन एवं भारतीय सलाहकारी परिषद की स्थापना की घोषणा की। रैमजे मैकडोनाल्ड ने स्पष्ट किया कि यदि भारतीयों में आपसी सहमती नहीं हो सकी तो साम्प्रदायिक निर्णयों की घोषणा करेंगे। 07 सितम्बर 1931 से 01 दिसम्बर 1931 तक चले द्वितीय गोलमेज सम्मेलन भी कोई सार्थक परिणाम हासिल नहीं क्र सका और भारतियों के हृदय में फिर से रोष की भावना उत्पन्न की।

तृतीय गोलमेज सम्मेलन :

तीसरे गोलमेज सम्मेलन की शुरुवात 17 नवम्बर 1932 से 24 दिसम्बर 1932 के बिच में सम्पूर्ण हुआ जिसमें न तो कांग्रेस के एक प्रतिनिधि ने भाग लिया और न हीं गांघी जी ने। ब्रिटिश की दोहरी नीति के कारण भदेश के अन्य नेतागण भी इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं की। कांग्रेस ने इस सम्मेलन का फिर से बहिस्कार किया। 

पहले दो सम्मेलनों की भांति ही तीसरे सम्मेलन की कोई सार्थक उपलब्धी नहीं हुई । तीनों आयोजनों में ब्रिटिश सरकार की अपनी चाल रही जो कभी सफल नहीं हो सकी। तीनों सम्मेलनों के समुचित विश्लेषण हेतु एक जॉइंट कमिटी की स्थापना की गई और इसे भारत के लिए एक अधिनियम बनाने की सिफारिश गई। यही समिति ने एक विधेयक का मसौदा पेश किया जिसे भारत सरकार अधिनियम 1935 के नाम से जाना गया।

नोट : भीम राव अम्बेडकर तीनों गोल मेज सम्मेलनों में हिस्सा लिया था।

 परीक्षा में पूछे गए टॉप 10 प्रश्न :

  1. गोलमेज सम्मेलन में  भारतीय ईसाईयों का प्रतिनिधित्व किसने किया था – के.टी.पाल  
  2. प्रथम गोलमेज सम्मेलन लन्दन के किस हॉल में सम्पन्न हुआ – सेंट जेम्स महल 
  3. प्रथम गोलमेज सम्मेलन कब हुआ था – 1930
  4. द्वितीय गोल मेज सम्मेलन कब हुआ था – 1931
  5. तृतीय गोल मेज सम्मेलन कब हुआ था – 1932
  6. द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किसने किया – गांधीजी ने 
  7. गांधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में कहाँ ठहरे थे – किंग्सले हॉल में 
  8. उस भारतीय का नाम क्या था जिसनें तीनों गोल मेज सम्मेलनों में हिस्सा लिया था-भीम राव अम्बेडकर
  9. 1932 में कौन सा सम्मेलन हुआ- तृतीय गोलमेज सम्मेलन
  10. मौलाना मुहम्मद अली कौन से सम्मेलन में भाग लिए थे – प्रथम गोलमेज सम्मेलन में 

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