भारत में नए राज्यों की मांग
भारत एक बहुलता वाला देश है , इसे एकता के सूत्र में पिरोये रखने के लिए संघ की धारणा को अपनाया गया है|
1950- 1960 के दशक में भाषायी आधार पर राज्यों के व्यापक पुनर्गठन के बावजूद नये राज्यों की मांग अभी भी जारी है |
नए राज्यों के मांग के पीछे सबसे बड़ा कारण क्षेत्रीय अन्याय है | जब किसी क्षेत्र के साथ राजनितिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, अथवा आर्थिक न्याय नहीं होता तो वहां के लोग अपने लिए पृथक राजनैतिक इकाई की मांग करने लगते हैं |
भारत में विविधता के अनेक आधार हैं , विविध क्षेत्रों का अलग अलग इतिहास अथवा भूगोल है , वहां एक सांस्कृतिक समूह का जमाव पाया जाता है तथा आर्थिक विकाश की दृष्टि से भी क्षेत्रों में समानता नहीं है | जब कभी किसी क्षेत्र की उपेक्षा की जाती है या उसके साथ अन्याय किया जाता है तो वहां के लोग इतिहास, भूगोल, संस्कृति आदि किसी भी आधार पर संगठित होकर अपने लिए अलग राज्य की मांग करने लगते हैं |
कभी कभी राजनैतिक रूप से महात्वाकांक्षी व्यक्ति क्षेत्रीय आक्रोश अथवा अलग पहचान को उभार कर अलग राज्यों की मांग पैदा करते हैं जिससे कि वे अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को पूरा कर सके | यदि उचित क्षेत्रीय मांग को नजरअंदाज अथवा दबाने की कोशिश की जाती है तो पृथक राजनैतिक इकाईयों की मांग स्वत्रंत राजनैतिक की मांग के रूप में परिवर्तित हो जाती है |
देश को अनेक राजनैतिक इकाईयों में इसलिए तोडा गया है ताकि प्रशासन व विकास की प्रक्रिया सुचारू रूप से चल सके|यदि कोई क्षेत्रीय मांग उचित है अथवा अलग राज्य बनाने से बेहतर प्रशासन, बेहतर विकास व बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है तो उस पर सहृदयता पूर्वक विचार करने अथवा मान लेने में कोई बुराई नहीं है क्योंकि छोटी छोटी इकाईयों के निर्माण से बेहतर प्रशासन व विकास करने के साथ साथ सरकार व जनता के बीच दूरी को कम करने तथा लोगों की राजनैतिक सक्रियता को बढाने में मदद मिलती है |
राज्यों की मांग यदि सिर्फ किसी व्यक्ति अथवा दल या संगठन द्वारा केवल राजनैतिक लाभ के लिए अथवा अलग पहचान बनाने के लिए किया जा रहा है जिसका प्रशासन विकास एवं प्रशासन की बेहतरी से कोई लेना देना नहीं है तो उसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए इससे पृथकतावादी मनोवृत्ति को बढ़ावा मिलता है जो देश की एकता व अखंडता के लिए ठीक नहीं है |
यदि सरकार चाहती है कि ऐसी मांग पैदा ही ना हो तो उसे हर प्रकार से क्षेत्रीय न्याय का ध्यान रखना होगा | मांगों को मानने अथवा न मनाने से बेहतर है कि पृथक राज्य के मांग की परिस्थितियों का निर्माण ही न होने दिया जाय |
ऐसे क्षेत्र जो अलग राज्य की मांग कर रहे हैं
- हरित प्रदेश (पश्चिमी उत्तर प्रदेश)
- बोडोलैंड (उत्तरी असम)
- पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश)
- गोरखालैंड (उत्तरी पश्चिम बंगाल)
- कोंगूनाडू (दक्षिणी तमिलनाडु)
- विदर्भ (पूर्वी महाराष्ट्र)
- मिथिलांचल (उत्तर बिहार)
- सौराष्ट्र (दक्षिणी गुजरात)
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