अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया-महान्यायवादी
- संविधान के भाग-5 और अनुच्छेद 76 के तहत अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया के पद का सृजन किया गया है।
- स्वतंत्र भारत के प्रथम महान्यायवादी एम. सी. सीतलवाड़ थे। और वर्तमान में के.के. वेणुगोपाल भारत के 15वें अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया हैं।
- अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया को ही भारत का महान्यायवादी कहा जाता है, जो भारत सरकार का सर्वोच्च विधिक अधिकारी होता है।
- अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया का मुख्य कार्य भारत सरकार को कानूनी मामलों में परामर्श देना और सरकार की वक़ालत करना है।
- अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय मंत्रिपरिषद की अनुशंसा पर की जाती है।
- अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया का कोई चुनाव नहीं होता। बल्कि वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत अपना पद धारण करता है। और राष्ट्रपति की अनुशंसा पर उसे कभी भी पद से पदच्युत किया जा सकता है।
- अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया-महान्यायवादी बनने की योग्यता वही है जो सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनने की योग्यता है।
- सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बनने के लिए कम से कम किसी न्यायालय में 10 वर्ष तक अधिवक्ता या 5 वर्ष तक न्यायाधीश बने रहने की योग्यता चाहिए। भारत के नागरिक होने के साथ साथ उसे राष्ट्रपति की नज़र में प्रमुख विधिवेत्ता भी होना चाहिए।
- अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडियाको भारत सरकार का प्रथम विधि अधिकारी कहा जाता है।
- अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया को देश के किसी भी न्यायालय में सुनवाई सुनने का अधिकार है।
- अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया संसद का सदस्य नहीं होता, फिर भी उसे संविधान द्वारा संसद के कार्यवाहियों में भाग लेने और बोलने का अधिकार प्राप्त है।
- अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया संसद के किसी भी बैठक में मतदान नहीं कर सकता। क्योंकि वह संसद का सदस्य नहीं होता।
- जब अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया संसद की किसी कार्यवाही में भाग लेता है तो उसे संसद के विशेषाधिकार की प्राप्ति होती है।
- संविधान में अटॉर्नी जनरल का पारिश्रमिक निर्धारित नहीं किया गया है। अटॉर्नी जनरल के पारिश्रमिक का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
- भारत में अटॉर्नी जनरल की भूमिका राजनीतिक न होकर संवैधानिक है। जबकि इंग्लैंड जैसे कई देशों में अलग से अटॉर्नी जनरल का पद नहीं होता, बल्कि वहाँ विधि मंत्री ही वहाँ का अटॉर्नी जनरल की राजनीतिक भूमिका अदा करता है।
- भारत में अटॉर्नी जनरल मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं होता जबकि कई सारे अन्य देशों में अटॉर्नी जनरल मंत्रिमंडल का अभिन्न हिस्सा होता है।
- अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया की सहायता के लिए एक सोलिसिटर जनरल तथा दो अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल की नियुक्ति होती है।
- संविधान में कहीं भी सोलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल का कहीं लिखित साक्ष्य नहीं है। इस पद का सृजन भारत सरकार द्वारा किया गया है।
- अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया को अवकाश उपरांत निजी प्रैक्टिस करने का अधिकार प्राप्त है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को अवकाश उपरांत निजी प्रैक्टिस करने का अधिकार नहीं है।
- अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया भारत सरकार का कानूनी सलाहकार होता है। इसलिए न तो वह भारत सरकार के खिलाफ कोई परामर्श दे सकता है और न ही कोई टिका टिप्पणी कर सकता है।
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