आंग्ल मैसूर युध्द

आंग्ल मैसूर युद्ध के कारण एवं परिणाम, Anglo-Mysore Wars in hindi

Anglo-Mysore Wars in hindi आंग्ल-मैसूर युद्ध के कारण एवं परिणाम

◆ भूमिका : Anglo Mysore Battles

आधुनिक भारत इतिहास का महत्वपूर्ण टॉपिक है जिसने अंग्रेजों को दक्षिण भारत में मजबूती से स्थापना की नींव प्रदान की। यह आर्टिकल आंग्ल मैसूर युद्ध, कारण एवं परिणाम से सम्बंधित है जिसमें चारों Anglo-Mysore Wars को आसान भाषा में वर्णित किया गया है। साथ ही इस आर्टिकल में मैसूर राज्य की स्थापना, हैदर अली, पोर्टोनोआ का युद्ध, टीपू सुल्तान, मद्रास की संधि, मंगलौर की संधि एवं श्रीरंगपट्टनम की संधि को भी कवर किया गया है।

◆ आंग्ल मैसूर युद्ध की पृष्ठभूमि और मैसूर राज्य की स्थापना :

आधुनिक भारत के इतिहास में जिस प्रकार उत्तर भारत में मुगलों का वर्चस्व स्थापित था ठीक उसी प्रकार उस समय दक्षिण भारत में विजयनगर और बहमनी साम्राज्य का बोलबाला था। वर्ष 1565 में विजयनगर और बहमनी राज्यों के तालिकोटा का युद्ध हुआ जिसके फलस्वरूप मैसूर राज्य का उदय हुआ।

मैसूर, विजयनगर राज्य का ही एक भाग था जहाँ वाडयार वंश का शासन था। वाडयार वंश की स्थापना चिक्का कृष्णराज ने की थी। चिक्का कृष्णराज मैसूर का नाममात्र का राजा था जिसको उसके दो मंत्री नंजराज एवं देवराज अपने हिसाब से चलाया करते थे। बाद में नंजराज ही मैसूर राज्य का वास्तविक शासक हुआ। नंजराज के शासन काल में एक हैदर अली नाम के व्यक्ति ने नंजराज की सेना में भर्ती हुआ जिसने अंततः नंजराज का विश्वास हासिल कर उसी की हत्या करके मैसूर की गद्दी संभाली।

◆ हैदर अली (1722 से 1782 ई°) :

हैदर अली का जन्म 1722 में मैसूर के कोलार जिले में हुआ था। हैदर अली के पिता का नाम फतेह मुहम्मद था जो उस समय एक किले के एक सैनिक अधिकारी थे। हैदर अली शुरुआत से ही युद्ध कौशल में तेज तर्रार था जिसकी योग्यता देखकर नंजराज ने उसे डिंडीगुल जिले का फौजदार नियुक्त कर दिया।

हैदर अली ने अपने कार्यकाल में न सिर्फ सेना को आधुनिक ढंग से प्रक्षिशित किया अपितु फ्रांसीसियों की मदद से डिंडीगुल जिले में एक आधुनिक शस्त्रागार की स्थापना भी की। बाद में
काफी सारा धन व शक्ति एकत्रित करके हैदर अली ने अपनी राजधानी मैसूर से श्रीरंगपट्टनम स्थानांतरित कर दी। वेदनुर का नाम बदलकर हैदरनगर करने श्रेय भी हैदर अली को जाता है।
यह हैदर अली ही पहला व्यक्ति था जिसने दक्षिण भारत में अंग्रेजो को अपने युद्ध कौशल से पराजित किया था।

टीपू सुल्तान हैदर अली का पुत्र था जिसने द्वितीय Anglo-Mysore war के दौरान पोर्टोनोवा के युद्ध में हैदर अली के मृत्यु हो जाने के बाद मैसूर का आगे नेतृत्व संभाला।

◆ टीपू सुल्तान ( 1782 से 1799 ई° )

वर्ष 1782 में हैदर अली की मृत्यु के बाद उसका पुत्र टीपू सुल्तान मैसूर का राजा बना जिसने बाद में स्वयं को बादशाह की उपाधि से अलंकृत किया। टीपू सुल्तान को मैसूर टाइगर के नाम से भी जाना जाता है। टीपू सुल्तान का हाव भाव देखकर ही थॉमस मुनरो ने इसे ‘अशांत आत्मा’ कहा था। टीपू ने अपने कार्यकाल में अपने नाम के सिक्के चलवाये एवं कलेंडर के महीनों के नाम को अरबी नाम से प्रयोग किया।

टीपू सुल्तान को श्रीरंगपट्टनम में जैकोबीन क्लब स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है जिसका सम्पर्क अफगानिस्तान, अरब, फ्रांस, तुर्की व कुस्तुन्तुनिया जैसे देशों के साथ था। टीपू आधुनिक नाप तौल पद्धति का समर्थक था और इसने अपने राज्य में नापतोल के आधुनिक पैमाने भी अपनाएं। टीपू अंग्रेजों की सेना को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अपनी नौसेना को मजबूत भी किया जिसमें उसकी सहायता फ्रांसीसियों ने की थी।

◆ प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध
First Anglo Mysore War

प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध का मुख्य कारण हैदर अली की फ्रांसीसियों से बढ़ती मित्रता थी जिसे अंग्रेजों को तनिक भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था। अँग्रेज़ हैदर अली की फ्रांसीसियों से बढ़ती मैत्री से चिंतित थे। उन्हें इस बात का भान था कि फ्रांसीसियों की दक्कन में बढ़ती चहलकदमी उनके विजय मार्ग में रोड़ा साबित हो सकता है। चूँकि मैसूर का क्षेत्र बगल में निजाम और उपर में में मराठों से घिरा हुआ था। इसी का फायदा उठाकर अंग्रेजों ने निज़ाम औऱ मराठों को क्षेत्र और पैसा का लोभ देकर अपने में मिला लिया।

किंतु हैदर की युद्ध कौशलता ने अंग्रेजी सेना की रणनीति को ध्वस्त कर दिया। और युद्ध से पहले हैदर ने अंग्रेजों वाली रणनीति बनाकर निज़ाम और मराठों को लाभ दिखाकर अपनी ओर मिला लिया। फलतः युद्ध क्षेत्र में अंग्रेजी सेना अकेले पड़ गई और बुरी तरह से पराजित हुई। फलस्वरूप हैदर अली ने मनचाही शर्तों के हिसाब से मद्रास की संधि स्थापित करके युद्ध को विराम दिया।

प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध ने न सिर्फ हैदर अली के मनोबल को उत्साहित किया अपितु अंग्रेजी सेना के बढ़ते कदम को भी हतोत्साहित भी किया। यह हैदर अली की ऐसी जीत थी जिसने अंग्रेजों को शर्म के मारे पानी-पानी कर दिया।

◆ मद्रास की संधि

मद्रास की संधि 4 अप्रैल 1769 ई° को हैदर अली और अंग्रेजों के बीच हुई थी जिसमें अंग्रेजों ने हैदर अली को बाहरी शक्तियों से सहायता करने का वचन दिया था। मद्रास की संधि अंग्रेजों की मुँह पर कालिख़ थी जिसे वो जल्दी से हटाना चाहते थे। प्लासी और बक्सर का युद्ध जितने के बाद अंग्रेजों की यह हार गले से उतर नहीं रही थी। यह मद्रास की ही संधि थी जिसमें हैदर अली ने अंग्रेजों की बनी बनाई रणनीति ध्वंस कर के मराठा और निजाम को अपनी ओर मिला कर अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी। निष्कर्षतः यह एक अंग्रेजों के द्वारा छल कपट की संधि थी जिसका असली रूप द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध में देखने को मिला जिसमें अंग्रेजों ने अपनी असली रूप दिखा दिया।

◆ द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध
Second Anglo Mysore War

द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध का मुख्य कारण अंग्रेजों की धूर्तता थी जिन्होंने मदद करने का वादा करके अपना हाथ पीछे खींच लिया। मद्रास की संधि के हिसाब से अंग्रेजों को हैदर की सहायता करनी चाहिये थी जब मराठों ने मैसूर के ऊपर आक्रमण किया। लेकिन अंग्रेज मूकदर्शक बने रहे और उल्टे हैदर को हराने की ताक में लगे रहे।

द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध का दूसरा मुख्य कारण अंग्रेजों द्वारा फ्राँसीसी बंदरगाह ‘माहे’ पर आक्रमण करना था जो कि हैदर अली के राज्य में पड़ता था। इसी माहे बंदरगाह से मैसूर की सेना के लिए जरूरतमंद सामग्री आती थी। अंग्रेजों की इस धृष्टता के कारण हैदर गुस्सा हो गया और कर्नाटक के अर्काट क्षेत्र पर हमला कर दिया। कर्नाट के नवाब ने अंग्रेजों से सहायता मांगी। फलस्वरूप कर्नल वेली और हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में दो अलग अलग सेनाएं नवाब की सहायता के लिए भेजी गई।

टीपू ने हुशियारी पूरक इन दोनों सेनाओं को एक दूसरे से दूर रखा और एक एक करके हराया और अर्काट को जीत लिया। अंग्रेजों ने फिर से वही चाल चली और मराठों व निजाम को फिर से प्रलोभन देकर अपने में मिलाकर सालबाई की संधि की जिससे हैदर फिर से अकेला पड़ गया। अंग्रेज इसी का फायदा उठाकर हैदर को पोर्टोनोवा के युद्ध में पराजित किए। बुरी तरह से घायल होने के कारण हैदर इस युद्ध में मारा गया।

हैदर के मारे जाने के उपरांत उसके पुत्र टीपू ने संघर्ष जारी रखा और अंततः उसने भी मंगलौर की संधि के माध्यम से इस युद्ध से विराम स्थापित किया।

मंगलौर की संधि

मंगलौर की संधि वर्ष 1784 में टीपू सुल्तान और लार्ड मैकार्टनी के बीच हुई थी। इस संधि के मुताबिक़ दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विजित क्षेत्रों को ससम्मान वापिस लौटा दिया और कैदियों को भी विमुक्त कर दिया। वारेन हेस्टिंग्स ने इस संधि की भर्त्सना ये कहकर की कि “यह लार्ड मैकार्टनी कैसा आदमी है ! मैं अभी भी विश्वास करता हूँ कि वह संधि के बावजूद कर्नाटक को खो डालेगा।”
कुल मिलाकर मंगलौर की संधि ने कुछ सालों के लिए एक सेफ्टी वाल्व की तरह कार्य किया क्योंकि यह खोखली विराम संधि को छोड़कर और कुछ नहीं थी।

◆ तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध
Third Anglo Mysore War

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध का मुख्य कारण टीपू द्वारा त्रावणकोर पर आक्रमण करना था।त्रावणकोर अंग्रेजों का मित्र राज्य था जिसपे आक्रमण करके टीपू ने जबरदस्ती बखेड़ा खड़ा कर दिया। फलस्वरूप कार्नवालिस ने खुद युद्ध की कमान संभाली और मराठा व निज़ाम की सेना को साथ मिलाकर टीपू को श्रीरंगपट्टनम के दुर्ग में पकड़ लिया। पकड़े जाने के बाद टीपू ने अंततः श्रीरंगपट्टनम की संधि सहर्ष स्वीकार की।

श्रीरंगपट्टनम की संधि

श्रीरंगपट्टनम की संधि वर्ष 1792 में अंग्रेजों एवं टीपू सुल्तान के बीच स्थापित हुई जिसमें अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को अपने राज्य का आधा हिस्सा अंग्रेजों एवं उसके साथियों को लौटाना पड़ा। टीपू को न सिर्फ 3 करोड़ का हर्जाना देना पड़ा बल्कि उसके दोनों पुत्रों को लार्ड कार्नवालिस के पास बंधक भी रखना पड़ा।

मैसूर के विभाजन के बाद अंग्रेजों ने खुद के लिए बारामहाल, डिंडीगुल एवं मालाबार का क्षेत्र रख लिया एवं बाकी का क्षेत्र जैसे कुछ मराठों एवं निज़ाम को दे दिया। कार्नवालिस ने इस संधि के बाद कहा था कि ‘हमने अपने मित्रों को अधिक भयानक बनाए बिना ही अपने शत्रु को फलदायक रूप से लंगड़ा कर दिया है।’

श्रीरंगपट्टनम की संधि ने टीपू सुल्तान को आर्थिक, सैन्य संगठन, राजनैतिक व मानसिक रूप से क्षीण क्षीण कर दिया।

◆ चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध
Fourth Anglo Mysore War

चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध का मुख्य कारण टीपू सुल्तान द्वारा लार्ड वेलेजली का सहायक संधि को अस्वीकार करना था। सहायक संधि अस्वीकार करने के कारण वेलेजली रूष्ट हो गया और टीपू के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। टीपू को चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध के दौरान दो बार युद्ध में हराया गया। सदासिर के युद्ध और मलावली के युद्ध में हार जाने के उपरांत टीपू को श्रीरंगपट्टनम में घेर लिया गया। इस तरह श्रीरंगपट्टनम में दुर्ग द्वार पर लड़ते लड़ते टीपू मृत्यु को प्राप्त हुआ।

चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध समस्त मैसूर युद्ध का समापन था जिसमें मैसूर का अंतिम योद्धा टीपू को मृत्यु होते ही समस्त मैसूर को निजाम, मराठे और अंग्रेजों में बंदरबांट की तरह बांट दिया गया। टीपू के दोनों लड़को को पेंशन देकर उनको सत्ता से हमेशा के लिए मार्ग अवरुद्ध कर दिया। इस युद्ध के विजय के बाद लार्ड वेलेजली ने छाती ठोकते हुए यह कहा था कि ‘अब पूरब का राज्य हमारे कदमों में है।

  • Anglo Mysore war के फायदे और नुकसान
  • आंग्ल मैसूर युद्ध के फायदे :

    अंग्रेजों का आधिपत्य में बढ़ोतरी
    प्लासी और बक्सर युद्ध के बाद दक्कन विजय ने अंग्रेजों का मनोबल और बढ़ाया
    अंग्रेजों ने मैसूर पे सहायक संधि थोप कर अपनी राह स्पष्ट कर ली

    आंग्ल मैसूर युद्ध के नुकसान :

    हैदर और टीपू सुल्तान की मृत्यु
    मैसूर का विभाजन
    फ्रांसीसियों का पतन
    मराठा और निज़ाम को बंदर बाँट देकर कुल मैसूर को अंग्रेजों ने हथिया लिया

    ◆ Way Forward of Anglo Mysore war

    आंग्ल मैसूर युद्ध चार युद्धों का एक समावेश था जिसका केंद्र मैसूर था। मैसूर दक्कन भारत एक ऐसा महत्वपूर्ण क्षेत्र था जिसको विजित करने की हार्दिक इच्छा न सिर्फ अंग्रेजो की थी बल्कि मराठा और हैदराबाद के निज़ाम भी इसमें शामिल थे। तीन विपक्षी त्रिगुटों ( मराठा, हैदराबाद के निज़ाम एवं अंग्रेज) के आगे अकेला हैदर अली और उसका पुत्र टीपू सुल्तान ने मैसूर की रक्षा में अपना जान न्योछावर कर दिया।

    प्लासी, बक्सर के बाद मैसूर की जीत ने अंग्रेजों को मानसिक रूप से और मजबूत कर दिया। आंग्ल मैसूर युद्ध ने न सिर्फ अंग्रेजों को स्थायित्व स्थापित किया बल्कि अपने निकट प्रतिद्वंदी फ्रांसीसियों को भी जड़ से समाप्त कर दिया।

    ◆ आंग्ल मैसूर युद्ध से संबंधित Important Facts
    Anglo-Mysore Wars related Important Facts

    कुल मिलाकर चार Anglo Mysore War हुए जिसमें से प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध छोड़कर बाकी के तीनों युद्धों में अंग्रेजी सेना की विजय हुई।

    प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध वर्ष 1767 से लेकर 1769 ई• तक चला जिसका समापन मद्रास की संधि से हुआ।

    मद्रास की संधि 4 अप्रैल 1769 ई° को हैदर अली और अंग्रेजों के बीच हुई थी जिसमें अंग्रेजों ने हैदर अली को बाहरी शक्तियों से सहायता करने का वचन दिया था। यह एक अंग्रेजों के द्वारा छल कपट की संधि थी जिसका असली रूप द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध में देखने को मिला।

    द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध वर्ष 1780 से लेकर 1784 ई• तक चला जिसका समापन मंगलौर की संधि से हुआ।

    मंगलौर की संधि वर्ष 1784 में टीपू सुल्तान और लार्ड मैकार्टनी के बीच हुई थी। इस संधि के उपरांत दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विजित प्रदेशों को लौटा दिया और साथ ही कैदियों को भी मुक्त कर दिया।

    तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध वर्ष 1790 से लेकर 1792 ई• तक चला जिसका समापन श्रीरंगपट्टनम की संधि से हुआ।

    श्रीरंगपट्टनम की संधि वर्ष 1792 ई• में हुआ जिसमें टीपू सुल्तान को अपने राज्य का आधा हिस्सा अंग्रेजों एवं उसके साथियों को लौटाना पड़ा। टीपू को न सिर्फ 3 करोड़ का हर्जाना देना पड़ा बल्कि उसके दोनों पुत्रों को लार्ड कार्नवालिस के पास बंधक भी रखना पड़ा। श्रीरंगपट्टनम की संधि ने टीपू सुल्तान को आर्थिक, राजनैतिक व मानसिक रूप से क्षीण क्षीण कर दिया।

    चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध वर्ष 1793 में हुआ जिसमें अंततः टीपू सुल्तान मारा गया। फलतः मैसूर पर लार्ड वेलेजली द्वारा सहायक संधि का बोझ लादकर उसके दोनों पुत्रों को पेंशन दे दिया गया। यह आंग्ल मैसूर युद्ध का समापन था जिसने अंग्रेजों को पूरब राज्य का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

    आंग्ल मैसूर युद्ध से पूछे जाने वाले विभिन्न परीक्षाओं के प्रश्न
    Anglo Mysore Wars Gkjankari

    1. टीपू सुल्तान की मृत्यु किस युद्ध के दौरान हुई थी ?

    टीपू सुल्तान की मृत्यु चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध के दौरान वर्ष 1799ई• में हुई थी।

    1. प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध कब हुआ ?

    प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध वर्ष 1767 से लेकर 1769 ई• तक चला जिसका समापन मद्रास की संधि से हुआ।

    1. द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध कब हुआ ?

    द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध वर्ष 1780 से लेकर 1784 ई• तक चला जिसका समापन मंगलौर की संधि से हुआ।

    1. तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध कब हुआ ?

    तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध वर्ष 1790 से लेकर 1792 ई• तक चला जिसका समापन श्रीरंगपट्टनम की संधि से हुआ।

    1. चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध कब हुआ ?

    चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध वर्ष 1793 में हुआ

    1. श्रीरंगपट्टनम की संधि कब हुई थी ?

    श्रीरंगपट्टनम की संधि वर्ष 1792 ई• में टीपू और अंग्रेजों के बीच हुई थी।

    1. मंगलौर की संधि कब हुई थी ?

    मंगलौर की संधि वर्ष 1784 में टीपू सुल्तान और लार्ड मैकार्टनी के बीच हुई थी।

    1. तालिकोटा का युद्ध कब और किसके बीच हुआ था ?

    वर्ष 1565 में विजयनगर और बहमनी राज्यों के तालिकोटा का युद्ध हुआ जिसके फनलस्वरूप मैसूर राज्य का उदय हुआ।

    1. वाडयार वंश के संस्थापक कौन थे ?

    वाडयार वंश के संस्थापक चिक्का कृष्णराज थे।

    1. मैसूर टाइगर किसे कहा जाता है ?

    टीपू सुल्तान को मैसूर टाइगर कहा जाता है।

    1. द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध के समय गवर्नर जनरल कौन था ?

    वारेन हेस्टिंग्स

    1. तृतीय Anglo Mysore war के समय गवर्नर जनरल कौन था ?

    लार्ड कार्नवालिस

    1. चतुर्थ Anglo Mysore war के समय गवर्नर जनरल कौन था ?

    लार्ड वेलेजली

    1. किस युद्ध में हैदर अली मारा गया ?

    पोर्टोनोवा के युद्ध में हैदर अली मारा गया जो कि द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध का हिस्सा था।

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