1857 की क्रांति
भूमिका
सन 1757 में ‘प्लासी युद्ध’ के बाद अंग्रेजों ने भारत में अपने उपनिवेश की विधिवत शुरुआत की। ब्रिटिश उपनिवेश का प्रारंभिक उद्देश्य अधिकतम आर्थिक एवं व्यापार लाभ कमाना था। जो कालांतर में भारत को कच्चे माल का निर्यातक और तैयार माल के आयातक बनाने का मार्ग प्रशस्त किया।
जहाँ एक तरफ भारत का तेजी से विऔद्योगिकीकरण हुआ तथा भारतीय समाज की कृषी पर निर्भरता पहले से और अधिक बढ़ गई। वहीं दूसरी तरफ भारी-भरकम कर(Tax), जमीदारों के अत्याचार व अंग्रेजो की भू-नीतियों के कारण किसान समुदाय भी निम्नतम स्थिति में पहुँच गया। कच्चे माल को बढ़ावा देने के लिये कृषि के वाणिज्यीकरण पर बल दिया गया जिमसें नील, कपास, अफीम, चाय, जुट, कॉफी आदि के उत्पाद हेतु कृषकों को मजबूर किया गया।
कृषि के वाणिज्यीकरण के कारण खाने व उपभोग करने वाले अनाजों में कमी आने लगी।जिसके कारण कई बार अकाल की स्थिति भी बढ़ने लगी। इसके कारण देश में अंग्रेजों के खिलाफ जन आक्रोश बढ़ने लगा। 1857 क्रांति की शुरुआत 10 मई को मेरठ कंपनी के भारतीय सिपाहियों द्वारा शुरू किया गया जो बाद में जनव्यापी विद्रोह बन गया। इसे भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की पहली लड़ाई के नाम से भी जाना जाता है।
● 1857 की क्रांति के विद्रोह के प्रमुख कारण :
1)1857 की क्रांति के राजनीतिक कारण –
• 1857 के क्रांति के राजनीतिक कारणों में लार्ड वेलेजली की ‘सहायक संधि’ तथा लार्ड डलहौजी का ‘व्यपगत का सिद्धांत(डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स)’ प्रमुख था।
• लार्ड वेलेजली की सहायक संधि के अनुसार के भारतीय राजाओं के अपने राज्य में ब्रिटिश सेना को रखनी पड़ती थी। जिसके कारण उनकी निज स्वतंत्रता समाप्त होने लगी और उनके कार्य मे कंपनी का हस्तक्षेप बढ़ने लगा।
• लार्ड डॉलहौजी द्वारा ‘राज्य हड़प नीति’ या ‘व्यपगत के सिद्धांत(doctrine of lapse)’ द्वारा अंग्रेजों ने हिन्दू राजाओं के दत्तक पुत्र लेने के अधिकार को समाप्त कर दिया। तथा वैध उत्तराधिकारी नहीं होने पर उस राज्य को ब्रिटिश राज्यों में मिला लिया जाता था।
• लार्ड डलहौजी द्वारा विलय किये गए क्षेत्रों के नाम –
सतारा(1848), जैतपुर, संबलपुर(1849), बघाट(1850), उदयपुर(1852), झाँसी(1853), नागपुर(1854), करौली(1855) एवं अवध(1856)
• उपरोक्त बिंदुओं के अलावे पेशवा का पेंशन बंद किये जाने का भी विषय असंतोष का एक प्रमुख कारण बना।
● 1857 की क्रांति के प्रसाशनिक कारण :
• भारतीयों के प्रति अंग्रेजों की भेदभावपूर्ण नीति जैसे भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त नहीं होने देना, सिविल सेवाओं में सम्मिलित नहीं होने देना इत्यादि ऐसे कई कारक हैं जिन्होंने 1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
• अंग्रेजों द्वारा न्यायिक प्रक्रिया में एकाधिकार जैसे की, कोई भी न्यायिक मामलों की सुनवाई सिर्फ अंग्रेजी न्यायाधीश ही कर सकते थे जिसमें भारतीयों के लिये कोई जगह नही था। अंग्रेजों की पक्षपातपूर्ण न्याय प्रणाली, लंबी अवधि व ख़र्चीले प्रावधान सिपाही विद्रोह के प्रमुख कारणों में से एक था।
• डलहौजी ने तंजौर और कर्नाटक के नबाबों की उपाधियां जब्त कर ली थी। अंग्रेजो द्वारा मुगल शासक बहादुरशाह ज़फ़र को अपमानित कर लाल किले को खाली करने का आदेश दे दिया जिसमें यह उद्घोषित किया गया था कि मुगल शासक अब सम्राट नही सिर्फ़ ‘राजा’ कहलायेगे।
फलतः भारतीयों के हृदय को ठेस पंहुचा जिसकी धमक 1857 की क्रांति का सूत्रपात बना।
• ब्रिटिश अधिकारीयों द्वारा प्रशासन सम्बंधित कार्यों में योग्यता की जगह धर्म को आधार बनाया गया। इससे न सिर्फ ईसाइयत की धर्मांतरण पद्धति का प्रसार हुआ अपितु आमजन में विद्रोह की एक भावना उत्पन्न हुई।
• 18वीं सदी के उत्तरार्ध से ही अकालों की बारम्बारता ने ब्रिटिश प्रशासनिक तंत्र की पोल खोल दी। परिणाम यह हुआ कि भुखमरी से त्रस्त जनता अब कमर कसकर कूच करने को तैयार थी।
●1857 की क्रांति के सामाजिक एवं धार्मिक कारण :
• ब्रिटिशों द्वारा संस्कृति सुधार की नीतियों से भारतीय संस्कृति को हिन मानकर बदलाव करने से समाज का एक रुढ़िवादी वर्ग ब्रिटिश के विरुद्ध खड़ा हो उठा। सदियों से चली आ रही भारतीयों की सभ्यता व संस्कृति ने अंग्रेजों की इस अंग्रेजियत को कड़ा विरोध किया।
• वर्ष 1850 में आए ‘धार्मिक निर्योग्यता अधिनियम’ द्वारा ईसाई धर्म को ग्रहण करने वाले को पैतृक संपत्ति में अधिकार दिया गया। परिणामस्वरूप हिन्दू समाज में असंतोष की भावना फैल गई।
• वर्ष 1853 में जारी किए गए चार्टर एक्ट में इसाई मिशनरी के धर्मांतरण को प्रोत्साहित किया गया। कालांतर में बेरोजगार, विधवाओं, जनजातियों, व अनाथों का धर्मांतरण करवाया गया साथ ही अंग्रेजों की नस्लवादी भेदभाव की नीतियों ने भी क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार की।
• वर्ष 1856 में डलहौजी के समय प्रस्तुत ‘विधवा पुनर्विवाह अधिनियम’ लार्ड कैनिंग के शासनकाल में पारित हुआ। इससे पहले भी सती प्रथा, दास प्रथा व नर बलि प्रथा पर लगाई गई रोक के कारण भारतीय समाज में सामाजिक रोष व्याप्त था।
• पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीय समाज की मूल विशेषताओं को समाप्त कर दिया परिणामतः परंपरागत शिक्षा समर्थकों ने विद्रोह के समय अंग्रेजों का भरसक विरोध किया।
● 1857 की क्रांति के आर्थिक कारण :
• ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियों यथा स्थाई बंदोबस्त, रैयतवाड़ी तथा महालवारी व्यवस्था आदि के द्वारा किसानों का अति दोहन व शोषण किया गया। सालों से चली आ रही किसानों की इस व्यथा ने क्रांति की एक अलग बुनियाद स्थापित की।
• व्यापारिक कपंनियों ने अपनी समस्त नीतियों के मूल में आर्थिक लाभ को केंद्र में रखा। कम्पनी की आर्थिक नीतियों ने भारतीय पारम्परिक उद्योगों को जड़ से समाप्त कर दिया। इससे दस्तकारी और हथकरघा उद्योग में संलग्न वर्ग व किसानों की आर्थिक स्थिति अत्यंत सोचनीय हो गई तथा कृषि के वाणिज्यिकरण से खाद्य संकट उत्पन्न हो गया। परिणामस्वरूप एक जनसमूह क्रांति की मशाल लिए आगे आने को उत्साहित था।
●1857 की क्रांति के सैन्य कारण :
• सेना में भारतीय और अंग्रेज़ी सैनिकों का अनुपात लगभग 5 : 1 था जिसमें ब्रिटिश सैनिकों की अपेक्षा भारतीय सैनिकों के साथ बुरा बर्ताव किया जाता था । नस्लीय भेदभाव अपने चरम अवस्था पर थी जिसमें योग्यता के बावजूद भारतीय सैनिक अधिकतम सूबेदार पद तक ही पहुँच सकते थे।
• लॉर्ड कैनिंग के समय वर्ष 1856 में ‘ सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम’ पारित किया गया था। जिसके द्वारा किसी भी समय, किसी भी स्थान पर , समुद्र पार सैनिकों का जाना, अंग्रेज़ी आदेश पर निर्भर हो गया जो भारतीयों के सामाजिक – धार्मिक मान्यताओं के ख़िलाफ़ था ।
• वर्ष 1854 में ‘डाकघर अधिनियम’ लाया गया , जिसके द्वारा अब सैनिकों को भी पत्र पर स्टैंप लगाना अनिवार्य हो गया । यह सैनिकों के विशेषाधिकारों के हनन जैसा था।
● 1857 की क्रांति के तात्कालिक कारण :
• दिसंबर 1856 में सरकार ने पुरानी लोहे वाली बंदूक ‘ ब्राउन बेस ‘ के स्थान पर ‘ न्यू इनफील्ड राइफल ‘ के प्रयोग का निश्चय किया । इसमें लगने वाले कारतूस के ऊपरी भाग को दाँतों से खोलना पड़ता था।
• बंगाल सेना में यह बात फैल गई कि कारतूस की खोल में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया गया है। फलतः हिंदू और मुस्लिम सैनिकों को यह प्रतीत हुआ कि चर्बीदार कारतूस के माध्यम से ब्रिटिश उनका धर्म नष्ट करवा रही है।
• अधिकारियों ने इस अफवाह की जाँच किये बिना तुरंत इसका खंडन कर दिया । कालांतर में यह बात सही साबित हुई कि गाय और सूअर की चर्बी वास्तव में वूलिच शस्त्रागार में प्रयोग की जाती थी ।
• सैनिकों का विश्वास था कि सरकार जान – बूझकर ऐसे कारतूसों का प्रयोग करके उनके धर्म को नष्ट करने तथा उन्हें ईसाई बनाने का प्रयत्न कर रही है । अतः सैनिकों ने क्षुब्ध होकर अंगेज़ों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
● 1857 की क्रांति की असफलता का कारण :
• कुछ महत्त्वपूर्ण वर्गों जैसे- ज़मींदारों व शिक्षित लोगों का आंदोलन में साथ न मिलना।
• विद्रोहियों का सांगठनिक आधार मज़बूत नहीं था। भले ही कुछ महत्त्वपूर्ण नेता आपस में मिले , किंतु किसी ठोस योजना पर अमल न कर सके।
• सैनिकों ने भी संपूर्णता में विद्रोह नहीं किया। यदि बंगाल के सैनिक विद्रोही थे तो पंजाब , गोरखा व मद्रास के सैनिक विद्रोह का दमन कर रहे थे।
• अंग्रेजों के अनुसार , विद्रोहियों की हार का सबसे बड़ा कारण उनमें योग्य नेतृत्व का न होना था। जॉन लॉरेंस ने कहा है कि “ यदि विद्रोहियों में कोई एक भी योग्य नेता होता तो हम सदा के लिये हार जाते। ‘
• संगठन , अनुशासन , सामूहिक योजना , केंद्रीय नेतृत्व का अभाव , नेताओं की गुटबंदी व आधुनिक हथियारों की कमी को समग्र रूप से असफलता का कारक माना जा सकता है ।
● 1857 की क्रांति का महत्त्व :
• 1857 के विद्रोह की विफलता ने भारतीयों को यह आभास कराया कि विद्रोह में मात्र सैन्य बल के प्रयोग से सफलता नहीं पाई जा सकती बल्कि सभी वर्गों का सहयोग , समर्थन और राष्ट्रीय भावना भी आवश्यक है ।
• इस विद्रोह से भारतीयों में विदेशी सत्ता के विरुद्ध एकता व राष्ट्रीय भक्ति के बीज पैदा हुए।
• विद्रोह के बाद भारत सरकार के ढाँचे और नीतियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये गए जिससे भारतीयों को धीरे – धीरे अपने देश के शासन में भाग लेने का अवसर मिलने लगा ।
● 1857 की क्रांति का परिणाम :
• स्वतंत्रता संग्राम की दृष्टि से भले ही यह विद्रोह असफल रहा हो , परंतु इसके दूरगामी परिणाम काफी उपयोगी रहे । मुगल साम्राज्य का दरवाजा सदा के लिये बंद हो गया । ब्रिटिश क्राउन ने कंपनी से भारत पर शासन करने के सभी अधिकार वापस ले लिये।
•1 नवंबर , 1858 को इलाहाबाद में आयोजित एक दरबार में लॉर्ड कैनिंग ने महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा को पढ़ा । उद्घोषणा में भारत में कंपनी का शासन समाप्त कर, भारत का शासन सीधे क्राउन के अधीन कर दिया गया।
• इस अधिनियम के द्वारा ‘भारत राज्य सचिव’ के पद का प्रावधान किया गया तथा उसकी सहायता के लिये 15 सदस्यीय इंडिया काउंसिल ( मंत्रणासमिति ) की स्थापना की गई । इन सदस्यों में 8 की नियुक्ति ब्रिटिश सरकार द्वारा तथा 7 की नियुक्ति ‘ कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ‘ द्वारा किया जाना सुनिश्चित किया गया।
• ‘भारत सचिव’ ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य होता था और इस प्रकार संसद के प्रति उत्तरदायी होता था ।
• 1858 के अधिनियम के तहत भारत के गवर्नर जनरल को ‘वायसराय’ कहा जाने लगा । इस तरह लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बना।
• ब्रिटिश के साम्राज्य विस्तार पर रोक , धार्मिक मामलों में अहस्तक्षेप , सबके लिये एक समान कानूनी सुरक्षा उपलब्ध कराना , भारतीयों के प्राचीन अधिकारों की रक्षा व रीति – रिवाजों के प्रति सम्मान के वायदे भारत सरकार अधिनियम , 1858 के तहत किये गए ।
• अंग्रेजों की सेना का पुनर्गठन किया गया ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके। भारतीय सैनिकों की संख्या में कमी की गई । तोपखाना पूर्णत : यूरोपीय सैनिकों के हाथों में सौंप दिया गया। विद्रोह के पूर्व बंगाल व अवध के सैनिकों की संख्या सर्वाधिक थी , परंतु अब सिखों व गोरखों की संख्या में काफी बढ़ोतरी कर दी गई ।
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